हिमालय के अच्चल से | Himalaya ke Achchal Se

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Book Image : हिमालय के अच्चल से  - Himalaya ke Achchal Se

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनसुय्या के समान ही मद्दान्‌ पतित्रता नारी बनें | ललितसोहन सर्यादापुरुपोत्तम भगवान्‌ राम द्वारा प्रस्तुत एक पत्नीघ्रतके 'छादशं को छापनायें । गम्भीर निष्ठा और विश्वास पूर्वक दोनों में परस्पर प्रेम हो । विवाह पत्रित्र है । घर पवित्र है । पत्नी झपने पति की सेवा करे, पत्ति अपनी पत्नी को सन्मान दे श्लौर पति तथा परनी दोनों मिल कर अपने गुरुजनों, अतिथियों, विद्वानों तथा सन्त-महात्माओं की सेवा 'छौर सन्मान करें । दोनों दी धर्म के श्रनुसार निर्धनों और 'अभावप्रस्तों की सहायता करें । उनका घर भगवान्‌ का पवित्र सन्दिर बने । उसमें सगबान के दिव्य नाम की आनन्दूदायी ध्वनि गूजती रहे । भगवान्‌ की पूजा नित्य विराम गति से चलती रहे । धूप ब्ौर आरती की पवित्र सुगन्धि से उनका घर निश्चय ही दिव्य घाम बन जायेगा | इसमें सन्देद नहीं कि ऐसा घर और ऐस। जीवन नवदम्पति के लिए सुख, समद्धि, श्भ्युदय और सफलता का वाहक होगा। भगवान्‌ में श्रद्धा रखिए । अपने कतेंप्य का यथात्रत््‌ पालन फीजिए। सदा भगवदूचिन्तन कीजिए । सचाई और धर्म के सागं पर चलिए । ध्यान रहे कि आप दोनों सदा ही भगवान्‌ के सालिध्य में हूँ। भगवान्‌ 'ापके हृदय में निवास करते हैं । जीने का अथे है. भगवान्‌ की ब्मौर नित्य एक पग झागे बढ़ना | आपको भगवान्‌ का 'आशीवोद प्राप्त हो । ललिव सोहन तथा उनके माता-पिता 'मोर सभी वबन्धु-बान्धवों पर सदूगुरुदेव शिवानन्द्‌ जी की कृपा बनी रहे । इस शुभ विवाद के मंगल अवसर पर भगवान्‌ अपनी कृपा-दुष्टि करें । शिवानन्दाध्रम गुरुदेव के चरणों में श्रपना ही २५ नेवम्यर, १8६४ स्वामी चिदानन्द




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