सर्वोदय के सेवकों से | Sarvodaya Ke Sevako Se

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Sarvodaya Ke Sevako Se by आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह हालत असह्य श्७ कुछ लोग तो मेरी ही आशा करते हें। कहते है कि विनोवा के आने पर काम होगा । लेकिन अब तो हम विहार में गिरफ्तार हो गये हैं । हमारा काम करने का एक ढग हूँ । पहले व्यापक प्रचार करना था, इसलिए इघर- उधर घूम लिया और कही दस हजार और बीस हजार, ऐसी जमीन प्राप्त करते हुए तीन-चार लाख एकड जमोन प्राप्त की । उससे हवा फल गई, लेकिन अगर आज में उसी तरह काम करता चला जाऊँ तो पाच-छ साल लगेंगे और उसमे भी कुल पद्रह-बीस लाख एकड जमीन ही मिलेगी । पर आखिर इतने से क्या होगा ? हमें तो पाच करोड एकड हासिल करना है। उससे कम अब में नही वोलूगा। लेकिन कही पर गहरा भी जाना पड़ता हैं, इसलिए मेने विहार चुना है, और विहार में भी गया जिला चुना है । मेने आपको तीन वातें वताई -- १ आप अपना पुरा समय भूदान में दे दो । २. नेता की आणा मत करो । ३ में यहा जो विहार मे अधिक समय रहने वाला हू, उससे आप कुछ भो खोते नही, वल्कि वहुत पाते हैं । (प्रइन. विहार राज्य का मामला हल होने पर भी वाकी राज्यों का काम तो बाकी ही रहेगा । तब उसके लिए कया करना होगा ? ) यह हालत असह्य विहार राज्य का मसला हल होने पर भी दूसरे राज्यों के लोग चुप वठेगे, यह सोचना ही गलत है। या तो वहा को सरकार कानून करेगी, नहीं तो कार्यकर्ता लोग काम करेगे ओर नहीं तो वहा के लोग वलवा करेंगे । वहा रकक्‍्त-रजित राज्य-क्रान्ति होगी । अगर वेतों क्रान्ति हुई तो में उससे सुखी हो होऊगा ' आज की हालत असह्य हुई, और इसलिए वहा क्रान्ति हुई तो उसे रोकने वाला में कौन हू । जाज को हालत में किसी भी हालत में सहन करने को तैयार नही हू । दुनिया की आज की हालत ऐसी है कि दुनिया के किसी एक कोने में भी कुछ हुआ तो दुनिया भर में वह बात फैचतो है । जहां काव्सीर का राजा खत्म हुआ, वहा सब राजानों की गद्दी हिलने लगती है । जहा जआन्य




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