साहित्य और कला | Sahitya Aur Kala

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Sahitya Aur  Kala by भगवत शरण उपाध्याय - Bhagwat Sharan Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फचि क्या लिखें ? द्श विषय है और करपना वह समवेदी स्वर जो अयचर मे भी ज़ं सें भी घाण पुँकती है | जब कचि कहता है कि प्राची के द्वार से उबा झौँक रही हैं तब वह अपने हमारे बौर जड़ कृति की प्रातत्कालीन पूर्वाकाश की लालिसा के बीच सम्बन्ध स्थापित कर देता है जब वह कहता है कि वातायन में मलवानिलू डोल रहा है तब बह हवा की नडता में नये और असत्य शुण का आदिर्भाव नहीं करता परन्तु इमारे और उस अचेतन के वीच एक समबुद्धि का आविष्कार अवदय कर देता है जब वह कहता हैं कि मुिशी थ में प्रकृति नीरव थी तब वह जड़ ग्रहति को जैसे जिल्ना दे क्र हमारे अत्यन्त लिकट छा देता है--यद्यपि प्रकृति की जता को बदल देनाः उसे मे अभी ही है और न वह ऐसा कर ही सकता है | परन्तु यद्दी उसकी कच्पना हैं जो हमारे और जड के वीन्च एक समवेद्य सम्बन्ध स्थापित कर देती है | इस स्थिति में उस कच्पना के इच्छित प्रभाव को शिहानुभूति कह कर भी व्यक्त किया जा सकता है । यही सड़ानुभूति उत्पन्न कर देनेवाला कवि इस प्रकिया में जिस मात्रा में सफल होता है उसी मात्रा में बह महान होता हैं । कालिदास का ऋतुसंदार यद्यपि उच्चकोरटि के काव्य के रूप से भालोचक की इष्टि से स्थान महीं पा संकता-- कम-से-कम उसकी गणना उसो कवि के रघुबंदा कुमारसम्मय और मेबदुत के साथ एक साँस ें नहीं की जा सकती--फिर भी इसी सहानुभूति के कारण इसी कब्पसा द्वारा प्रकृति को प्रायः चेतम कर देने के कारण उसमें काव्य की धारा बह पल है । जर्तुरसंद्ार का यह शुण जो उसका वर्तुतः एक ही गुण है उस महदाकंवि की प्रत्येक कुति में अनेकधा प्रस्तुत हुआ है । जड़ प्रकृति--हिंमालय चन-पान्तर ससुद्ध ऋतु स्शादि--सजीव-सी हो उठती हैं और हमारा उससे मानों समानधर्मिता का सम्पर्क हो आता है । वाव्मीकीय रामायण में सीता को खोजते हुए राम का पशु-पश्षियों और चेतन- अचेतन से पत्नी का पता पूछना एक ऐसी सहानुभूति और कब्पना का वास्तविक संसार स्वड़ा कर देता है जो सम्यमानयीय है सहज हैं सत्य है शोभन है काव्योच्चित है | इस प्रकार सद्दानुभूति की उत्पादक कब्पना अर्लकार की ही भरेंवि उससे कहीं पुष्ठ और सम्मोइुक चस्तुतथ्य का आदरण है चर्ण्य स्वयं सुन्दर हो सकता हैं परन्ठु उसके सौन्दर्य को वहन करनमेवाला और उसको उचित मात्रा में वियक्षणता दास समावत करनेवाल साधन यह कल्पना ही है। कबि निश्चय उसका अधिकाणिक उपयोग करे उसे समुचित उपकरण के रूप में अंगीकार कर उसका उपयोग करें परन्त हाँ माजनुकूल ही अन्यथा उसका अतिसेवन बर्ण्ष को संदिग्ध अथच छंचिम सत्य भी कर देगा 1 आवरण या परिधान नग्न सत्य की नग्नतामात्र देकने के किए है उसकी परुषता कोमक करने करे लिए उसे सर्वे छिपा देने के लिए. महीं 1 कवि बराश्र यह ध्यान रदखे कि चह बरण्य को कट्पना के परिधान से अवशुण्टित कर प्रभा- वद्दीम महीं कर देता ऐसा करके अपने उद्देश्य से विसिख नहीं हो जाता | यहाँ पर में इत पर भी विचार कर लेना चाहुंगा कि साहित्य के और इस सब में काव्य क्यू वे. मुख्यूत आधार क्या हॉ £ मूकभूत माघार हैं या चुद




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