विविध - संग्रह | Vividh Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.79 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सज्जन | विविष-संग्रह (५)
झगनी रह, संग्रह घर्म कथान,
'परिथह् साधुन को गन हे ।
कहूँ “केशव” भीतर ज्योति जगे,
झअरु बाहर भोगन को तन है ।.
मन हाथ सदा जिनके तिनके,
चन दी घर हे घर ही वन. है ॥ १९ ॥
सहाफवि “किशवद् सजी” | ,
क्चित्त ।'
कै ७५. हा ७४ हा. ९
'पेट को निपट शुद्ध, ऑँखन लजीलो वीर;
उर को गंभीर होय; मीठो महा मुख को।
वाह को पगार पुनि पाय को अडिंग होंय,
.. बोलन को सौचो, 'देवीदास' सूची रुख को ।
च१. दी ० ५ 5
मन को उदार, ढीलठो हाथ. को, अकेठो टेक,
काछह्दी को काठो है, सहेया सुख दुख को ।. -
पचिकें पितामह ने ऐसो जो संवान्यो तब,, _
यातें.कछु झोर हू ।सँगार हूं पुरुख (घ). को॥ २०॥
., दिवीदाश ।
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