विविध - संग्रह | Vividh Sangrah

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Vividh Sangrah by ठाकुर भूरा सिंह शेखावत - Thakur Bhura Singh Shekhavat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सज्जन | विविष-संग्रह (५) झगनी रह, संग्रह घर्म कथान, 'परिथह् साधुन को गन हे । कहूँ “केशव” भीतर ज्योति जगे, झअरु बाहर भोगन को तन है ।. मन हाथ सदा जिनके तिनके, चन दी घर हे घर ही वन. है ॥ १९ ॥ सहाफवि “किशवद् सजी” | , क्चित्त ।' कै ७५. हा ७४ हा. ९ 'पेट को निपट शुद्ध, ऑँखन लजीलो वीर; उर को गंभीर होय; मीठो महा मुख को। वाह को पगार पुनि पाय को अडिंग होंय, .. बोलन को सौचो, 'देवीदास' सूची रुख को । च१. दी ० ५ 5 मन को उदार, ढीलठो हाथ. को, अकेठो टेक, काछह्दी को काठो है, सहेया सुख दुख को ।. - पचिकें पितामह ने ऐसो जो संवान्यो तब,, _ यातें.कछु झोर हू ।सँगार हूं पुरुख (घ). को॥ २०॥ ., दिवीदाश ।




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