भारतीय संत | Bhartiya Sant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संता ककीर उत्तरी भारत के धर्म प्रचारकों और समाज सुधारको मे कबीर का नाम सबसे ज्यादा मशहूर है। ये रामानन्द जी के खास चेलो मे से थे । दरअसल में इंश्वर के प्रेम और भक्ति के जिम पोघे को रामानन्द ने उचर भारत की जमीन मे लगाया था; उसे सीच कर बडा करने का काम कबीर ने ही पूरा किया । इसलिए कहा जाता है-- 'भक्ती द्राविय ऊपजी,; लाये रामानन्द । परगट क्या कबीर न सप्त दीप नव ख़रुड ।।”' यही नहीं कबीर ने हिन्द-मुसनचमान और ऊँच-नीच के भेदभाव का विरोध कर अपने जमाने के समाज में फलों हुई बुराइयो और धर्म के झूठे पाखण्डो का भी खडन किया । उन्होंने हिन्द-सुस्लिम एकता पर जोर देते हुए आदमी के झसली महत्व को समकाया और दिखावटी रस्मो से दूर परमात्मा की सच्ची भक्ति का उपदंश दिया । कबीर सच १३९८ ई० मे बनारम में पंदा हुए थे । अपने जन्म और अपने चारो ओर के वातावरण के कारण भी वे हिन्द मुस्लिम एकता के इस बड़े काम को पूरा करने के मली प्रकार योग्य थे। कबीर ने अपनी जिन्दगी में हिन्दू और मुस्लिम दोनो धर्मों और तहजीबों को देखा और समझा, इसलिए वे इन दोनों विरोधी धाराओं को एक दिशा की ओर मोडने मे बहुत हद तक सफल हो सके। कहां जाता है कि कबीर किसी विधवा ब्राह्मणी के गभे से पदा हुए थे। उस विधवा ने लोक-लाज के डर से इन्हें लहरतारा के तालाब के




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