शूद्रक | Shudrak

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Shudrak by चन्द्रबली पांडे - Chandrabali Panday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१. राजा शूद्रक शद्रक की सत्ता झदक की सत्ता को न सानना अतीत की झाँख को शो देना है पर सान कर उसे दिखाया क्या जाय यही झ्रसमजस है । साना कि धयूद्रक के परिचय से किसी सूच्रघार ने कद दिया-- ऋणग्वेद॑ सामवेद॑ गणितमथ कलां बेशिकीं हस्तिशिक्षां ज्ञात्वा शबंप्रसादाइ थपगततिमिरे चन्ुषी चोपलभ्य । राजानं बीद्य पुत्र परमससुदयेनाध्मेघेन चेष्टा लब्ध्वा चायुः शताब्द दशदिनसदितं शुद्रकोडर्प्रि प्रविष्ठः । [ सच्छकटिक १1४ ] किंतु इससे यह कैसे सिद्ध हो गया कि इस भूत के कारण शूद्रक इुआझा ही नहीं है स्मरण रहे यह शूदक का सामान्य अ्ग्निसस्कार नहीं प्रत्युत विशिष्ट झश्नि लाभ है जो जीते जी लिया जाता जीव की भक्ति के देतु ही है। सुच्छकटिक में झूदक के विषय में जो कुछ कहा गया है उसका विचार झागे सलकर होगा । भी यहाँ कहना तो यह होगा कि घ्रचुर प्रसाणों के प्रकाश में कोई शूद्रक को रब कल्पना का प्राणी नहीं कह सकता । वह सले ही कभी उस रूप में न रहा हो जिस रूप में वह श्राज संस्कृत चालाय सें जहाँ-तहाँ पाया जाता थवा स्वयं सच्छुकरिक में देखा जाता है। पर कभी वह या इसमें संदेह नहीं । हम किसी श्रोर की नहीं कहते । दमारे सामने तो कवि वाण की साखी है । न जाने कितनी घटनाओं का उसे ध्यान था कि एक के बाद दूसरी का उठलेख करता श्राप ही कह जाता दै कि-- उत्सारकरुचिं व रदहसि ससचिवमेत्र दूरीचकार चकोरनायथं शुद्रकदूतश्थन्द्रकेतुं जीवितात्‌ । [ हषंचरित पष्ट उच्छास का झंत ]




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