जाने अनजाने | Jaane Anjane

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Jaane Anjane by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीस जनवरीकी बह सन्ध्या १ वे किसानाके मित्र थे आर मजदरोक बन्घु । वे दददस्थियाक सलाहकार थे ओर संन्यासियोंक आदर्श | वे सबसे बड़े साम्बदादी थे वे धमकी मृत थे | वे साइहित्यको जीते थे. सत्य उनकी धमनियेका रक्त था अहिंसा उनका प्राण | उनकी क्रान्ति द्यान्त थी उनका विद्ोद सधुर था । उन्होंने राजनीतिक दृपित वातावरणसें मसानवताकों प्राण-पतिष्टा को थी | उनके अन्तरमं विरोधी तत्वाका अद्सुत सम्मिश्रण था | फिर भी वे सद्दान्‌ थे क्योंकि वे सानव थे ] कान्तने प्रभावित होकर धीरेसे कहा वें महामानव थे और उसी महामानवके लिए तुम रोते हो । वे सद्दान्‌ थे उनका अन्त भी उतना दही सहान्‌ हैं । क्या आजतक किसीने ऐसो सत्य पाइ है ? क्या काइ गांघोका तरह अपने जीवनस सफल हुआ द ? कया कोइ इन्सान जीते-जी ईश्वर बना है ? और क्या सहसा उनका गला रूंघ गया । उन्होंने किसी तरद अपना वाक्य पूरा किया और क्या क्या किसी युगमें इन्सानने इश्वरको गोली मारी है ? ओर फिर आगे बोलनेमें असमर्थ उन्होंने आँखें मींच दी | कमरेका गहन सन्नाटा एक बार फिर वह चला । एक वार फिर असिओं- का बॉघ टूट गया | फरवरी १९४८




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