अध्यात्मिक जीवन | Adhyatmik Jeevan

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Talks On At The Fet Of The Master by कोशल्या देवी मेहता

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( श्र ) “रे विचार शव मेरे मस्तिप्क में फिर कभी नहीं श्रा सकते, वे ता स्वप्न की भांति छुप्त हा गये ।” किन्तु दूसरे ही दिन #+ कब कि कि झु जव हम श्री गुरुदेव के तेजस से दूर दो जाते हैं ता हमें उच्च चृत्तियों को स्थिर रखने के लिये कठिन संघप करना पड़ता हैं, जिन्हें स्थिर रखना श्री छुरुदेव की समीपता में इतना खुगम जान पड़ता था 1 चतंमान सें जा लोग इस अध्यात्मिक पथ पी ओर जा रहें हैं, उन्हें यह स्थिति पाप्त करने का यत्न कायजगत सें रहते हुपे ही करना चाहिये, कारण कि उन्हें संसार की सहायता केचल ध्यान और विचार द्वारा ही नहीं --जैसा कि त्यागी व संन्यासी जन निःसन्देह रूप से करते थे-वरन्‌ नाना प्रकार के सांसारिक कार्यो में संयुक्त होकर ही करनी चाहियें। यह बहुत ही उन्दर विचार बोर महान श्रेय की वात है, तथापि करने में श्रत्यन्त जुप्कर है । इन कठिनाइयों के परिणाम स्वरूप वहुत थाड़े लोग इस में समथे हुय हैं। अधिकांश लोग तो ब्रह्मचिद्या की शिक्षा को केवल पढ़ कर ही संतोष कर लेते हैं, जैसे साधारण एंसाई लोग श्रपने मत का अदण करके ही संदुप्ट रहते हैं श्र इसे घ्यपने चित्य के जौवन में उपयोग करने की चस्तु न समझ कर, केवल रविवार के दिन के लिये वात चीत करने का पक सुन्दर विपय मात्र समभते हैं। अन्तर्जीवन का खच्चा विद्यार्थी इस प्रकार का वास्तविक जीवन व्यतीत नहीं कर सकता उसे तो तकसंगत और व्यवहदारिक हाना चाहिये, और बपने झ्ादर्शी का नित्यं प्रति के जीवन में निरन्तर आचरण करना चाहिये । इस प्रकार निरस्तर अभ्यासी बचना एक




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