योग फिलोसोफी और नवीन साधना | Yog Philosophy Aur Navin Sadhana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.47 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ४ 3
शरीर र-यतस्पज्ल सपाधि हैं । वास में यह योग-पावने थी
समाधियों हैं। और पिछली कपाल-भडिका श्रथवा सेचरी-
समाधि केवल चाजीगरी का खेल हैं 1 शध्यात्म-जगत में उसकी
कोई शाद्र की दृष्टि से नहीं देयता श्रीर न इससे को हे श्रध्यात्मिक
लाभ दोता है 1 ही
साम्प्रज्ञात और श्रसम्प्रज्ञात समाधियां
यह शऋषियों की समाधियाँ हैं । इनके करने के लिये मुद्रा
इत्यादि किसी भी कठिन किया दी श्रावश्यकत! नहीं है । यह
स्वयं ही प्रत्येक झम्यासी को धारणा और ध्यान के पश्चान आया
करती हैं, चाहे बह कमे योगी हो, उपासना व भक्ति योगी हो,
'अववा ज्ञान-योगी हो 1 ,
समाधि घास्तव में ध्यान की उस गहरी '्यवस्था का नाम है
जिसमे सावक वादा शन शुन्य हो जाता है। दात्पर्य्य यह हैं कि
ध्यान करते-करते जब मेसी श्यस्था हो जाय कि जिसमें पने
रारीर का तथा बाहिरी पदार्थों का ज्ञान न रहे उसको समाधि
कहते है । इसीका नाम योग है ।
जागय्रत-समाधि
कि व्यान के पश्चात् जब साधक इस व्यवस्था को पहुँचता है
व की भयमावस्थां का श्मारम्म दोता है इसमें ध्यान
का का भूल जाता है, बाहिरी ज्ञान भी उसको
खु ध्येय व लक्ष्य उसके सन्सुप रहता है। हो !
User Reviews
No Reviews | Add Yours...