योग फिलोसोफी और नवीन साधना | Yog Philosophy Aur Navin Sadhana

Yog Philosophy Aur Navin Sadhana by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४ 3 शरीर र-यतस्पज्ल सपाधि हैं । वास में यह योग-पावने थी समाधियों हैं। और पिछली कपाल-भडिका श्रथवा सेचरी- समाधि केवल चाजीगरी का खेल हैं 1 शध्यात्म-जगत में उसकी कोई शाद्र की दृष्टि से नहीं देयता श्रीर न इससे को हे श्रध्यात्मिक लाभ दोता है 1 ही साम्प्रज्ञात और श्रसम्प्रज्ञात समाधियां यह शऋषियों की समाधियाँ हैं । इनके करने के लिये मुद्रा इत्यादि किसी भी कठिन किया दी श्रावश्यकत! नहीं है । यह स्वयं ही प्रत्येक झम्यासी को धारणा और ध्यान के पश्चान आया करती हैं, चाहे बह कमे योगी हो, उपासना व भक्ति योगी हो, 'अववा ज्ञान-योगी हो 1 , समाधि घास्तव में ध्यान की उस गहरी '्यवस्था का नाम है जिसमे सावक वादा शन शुन्य हो जाता है। दात्पर्य्य यह हैं कि ध्यान करते-करते जब मेसी श्यस्था हो जाय कि जिसमें पने रारीर का तथा बाहिरी पदार्थों का ज्ञान न रहे उसको समाधि कहते है । इसीका नाम योग है । जागय्रत-समाधि कि व्यान के पश्चात्‌ जब साधक इस व्यवस्था को पहुँचता है व की भयमावस्थां का श्मारम्म दोता है इसमें ध्यान का का भूल जाता है, बाहिरी ज्ञान भी उसको खु ध्येय व लक्ष्य उसके सन्सुप रहता है। हो !




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