कथा सरित्सागर [खण्ड-1] | katha Saritsagar [Khand-1]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न १५ न के नामकरण के लिये हुआ है। इस मुख्य कथा-भाग को 'शरीर' कहा गया है और ग्रन्थ के छः अधिकारों में यह पाचवाँ है। कथा की उत्पत्ति, पीठिका, मुख और प्रतिमुख ये चार अधिकार उससे पहले आते हैं। 'दारीर' के पीछे उपसंहार होना चाहिए था, पर प्रन्थ का अन्तिम भाग ब्रुटिति होने से वह नहीं मिलता । मुख्य कथा-भाग-रूप 'दारीर' की अपेक्षा से लम्भों का समूह संभ- वत: गौण था। मूल प्राचीन बुहत्कथा में आमूलचूल विभागीकरण नहीं था । प्रस्तावित कथा प्रकरण के बाद दूसरे नामकरण के साथ संख्या बन्ध लम्भ थे और उसके बाद उपसंहार था। संस्कृत रूपान्तरो में केवल बुहत्कथामंजरी में उपसंहार का निर्देश है, पर लाकोत उपसंहार को मूलकथा का गौण अंग गिनते हैं । वसुदेव हिण्डी से सिद्ध होता है कि मूल बुहत्कथा में उपसंहार था। सोमदेव ने अपने कथासरित्सागर में उपसंहार निकाल दिया है, पर उसके अतिरिक्त क्षेमेन्द्र में प्राप्त कुछ प्रकीणं बातें देने के बाद सोमदेव ने नरवाहनदत्त के तमाम लम्भकों की एक सूची अपने ग्रन्थ के आरम्भ में दी है। उससे ज्ञात होता है कि बुहत्कथामंजरी के आरम्भ में भी मुलग्रन्थ की विषय-सुची थी, जो अब नष्ट हो गई है ।”' “अपने ग्रन्थ में कथा-उत्पत्ति यह शुद्ध जैत कथाभाग है, पर पीठिका और मुख की बाबत ऐसा नहीं । बुधस्वामी की कृति में 'कथामुख' यह तीसरे सर्ग॑ का नाम' है; पर पहले बेनाम के दो सग भी कथामुख के ही प्रारम्भिक भाग है। अर्थ-संगति की दृष्टि से कथामुख मे जो होना चाहिए, वह उसमें है, अर्थात्‌ कथा कहनेवाले का परिचय । कथा कहने का प्रसंग किस रीति से उपस्थित हुआ, यह उसमें बताया गया है। नरवाहनदत्त अपना सम्पूर्ण वृत्तान्त उत्तमपुरुप में कहते है । काण्मीरी लेखकों ने दूसरे लम्बक का नाम कथामुख लम्बक रक्‍्खा हैं। इसमें उदयन की कथा आती है। बुधस्वामी के कथामुख में जो भाग आता है, वह (कथामुख के लेखकों ने ) उस ग्रन्थ के अन्त में रक्‍्खा है; और नरवाहनदत्त आत्म-वत्तान्‍्त कहते है, ऐसा भी स्पप्ट उल्लेख स्वयं नहीं किया । इतना ही नहीं, कथा का वर्णन प्रथमपुरुष में तटस्थ रीति से किया है। नैपाली रूपान्तर की सचाई और काइमीरी रूपान्तर की श्रष्टता सिद्ध करने में लाकोत का यही मुख्य प्रमाण है । इस अनुमान को जैन रूपान्तर से भी समर्थन मिलता है। इसमें भी वसुदेव अपना सब चृत्तान्त आत्मकथा के रूप में उत्तमपुरुष में ही कहते है। 'कथामसुख' अथहा उससे तैयार किए हुए प्रति- मुख द्वारा बताया गया है कि आत्मकथा किस प्रकार कहो गई । “काब्मीरी लेखक सोमदेव और क्षेमेन्द्र ने कथापीठ को पहला लम्बक कहा है । गुणादय कवि-संबंधी कथानक उसका विषय है। उसके देखने से ज्ञात होता है कि गुणादय कवि-संबंधी कथानक का मूल कथा में होना संभव न था । बुधस्वामी के रूपान्तर मे कथापीठ शीर्ष क देखने में नहीं आता । किन्तु जैसा ऊपर कहा है, बुधस्वामी का आरम्भिक भाग ही कथामुख है। इस आधार से लाकोत निश्चित रूप से मानते हैं कि गुणादूय के मूल प्रंथ सें ही कथापीठ अंध नहीं था; पर वसुदेव' हिंण्डी में पीठिका (पेढिया ) भाग के होने से मानना पड़ता है कि बृहत्कथा में भी कथापीठ नामक भाग था। इस कथापीठ का विषय क्या था, यह एक प्रदन है। गुणादय-संबंधी कथानक तो इसमें न रहा होगा और वसुदेव हिण्डी की पीठिका में कृष्ण-संवंधी कथा का जो भाग है, वह




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