भाषातत्व और वाक्यपदीय | Bhasha Tatva Aur Vakya Padeey

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Bhasha Tatva Aur Vakya Padeey by बाबूराम सक्सेना -Baburam Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्ड क लेखक का वक्तव्य के शै यक्तिकम में कही गई प्रतीति होने लगती है पर सत्य यह है कि भवृं हरि ने जब शब्द को ब्रह्मा से उपमित कर ही दिया तब वह ब्रह्मा की समस्त मान्यताआ को भी दाब्द पर घटा कर दिखाने हैं । इस प्रकादय में देखने पर प्रथम काण्ड में आई हुई उनका समस्त युक्तियाँ दर्गन के ब्रह्म पर ही घटती हुई दिखाई देंगी । परन्तु दाव्द-ब्रह्म का वास्त- दिक स्वरुप क्या हैं ? इस वात को अली प्रकार हम तभी जान सकने जब हम उनके डान्द-सस्तान भर प्रचयापचयात्मक दाव्दों को सही रूप में पढ़ लेंगे । इसमें दौवों या #... १७५ दि कल ५ की होती यों के किसी वाद की व्याख्या की आवश्यकता हमें अनुभव नहीं होती । यह 5 गम /शाममगसर एन पकने अकनमलकर [कि कर ट् हू ह ञ पर कान व्यय स्व्य रे रछ किन के व्यादह्ारिक कथन है । भत हरि प्रचय और अपबय की व्याख्या स्वयं ही आगे ० ही का बन दर # ७० . च्ट आर चनकर करन डू। उन्होंन बह स्वाकार किया है कि कोई दाब्द आज जिस अथ में दन्क ञअ पर नलमगनन कक बाद स भी और फिर बाद में क रस | हे हक हि साया प्रा न यु बा क्र प्रचलित हे कल बह उस अथ से रहित भी हो सकता दे न का. न कक लव रान हर कथा मे डर बनाम थ भर उसी पथ में पुनः रूढ़ थी हो सकता है । स्पष्ट है कि इसी भाँति उसमें नये अथ भी कर सह सर जननप्तपसोनाना डा न का नया पटल कर पक दर तनमन कद कं दा. पा सब प्र कक बन जे दा शा नकत हू आप कुछ अन सदा के लिए उससे छूट भा सकते हे । पर इस पर था ब किगद कन्या रा सा नि हिशक ओं कद. पद आ न दाब्द बे हुणप्ताल - बहा - डा रहता हैं । बह अपनी सीसाओं से आगे बढ़ता हो रहता दे उसकी समा न अल्प या महान - स्फोटकाल या किसी अन्य ध्वनि आदि पर शाधारित नहीं दैं. बच्छि उसकी सीमा का वास्तविक आधार अ्थे या भावना पर धाधारित है । वास्तव में तो दाब्द है ही इस अर्थ-सावना का नाम जिसे हम अभि- पेय प्रतिपाइ याव्द-भावना या. अर्थभावना - कुछ भी - कह सकते हैं । इस अर्थ में निरन्तर गतिमयता प्रसरणललीलता आदि रहती है । उत्पत्ति स्थिति और प्रलय की चात का जहाँ तक सम्बन्ध है भतृं हरि उसे भी घटा कर दिखाते हैं । बन्द के अन्दर तीन प्रकार की स्थिति को वे स्वीकार करते हैं । इन्हें हुम उसकी शक्ति भी कह सकते हैं । ये है धारणा विस्तार और प्रत्यावर्तन । घारणा स्थिति का ही दूसरा नाम है 1. विस्तार प्रलय का रूपास्तरण मात्र है । और प्रत्यावर्तन को हम उत्पत्ति का रूपान्तरण कह सकते हैं । रिटेन्शन एक्सपेन्दान और रिवाइवल के रूप में दब्द की त्रिविघ गति उसे ब्रह्म ही सिद्ध करती है । यही है भतृं हरि के विवर्त का स्वरूप उसकी व्याख्या विव्तवाद के द्वारा करना उचित नहीं । जिस प्रकार ब्रह्म सर्वदयक्ति- मान्‌ होकर भी स्वयं आकृतिहीन है उसी प्रकार दाब्द का वास्तविक रूप उसका बाहरी माकार नहीं हैं बालक उसका अन्तर्भावना या अन्तइचेतना है । इस बात को भतृ हरि ने अनेकत्र अत्यस्त बल के साथ इहराया है । रण दै था कि यहू बाव्द-ब्रह्म यब्द संज्ञा क्रिया या पद के रूप में कोई इकाई नहीं है। दाब्द-तत्व का जअथ वाक-तत्व ही है । इसे . भवृ हरि ने इस प्रकार स्पष्ट किया हैः यदि वाक्‌ का माध्यम न हो तो कभी किसी की भावनाओं को - प्रकाशित होने का श्वसर न मिल पाये । संसार को आपस में जोड़ने वाली और पारस्परिक व्यवहार




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