श्री गोकुलनाथ जी के २४ वचनामृत | Sri Gokul Nath Ji Ke 24 Vachanamrit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) अारती कर तिथि वार उत्सव देखि अभ्यंग करावे . और जेसो स्वरुप तेसो पुष्टिमार्ग अनुसार तिथि ऋतुके अनुसार सिंगार करे और सेवा सिंगार विषे . चित्तको उदद गे संकल्प विकल्प न करे. और अपने मनमें अपराध को भय राखे श्रीमदाप्रभुजी की कपा तें अपनों भाग्य जानिके सेवा करे.मंगला राजभोग उत्थापन सेन कराय सांकर तारो लगाय वस्तु सामिग्रीकी चोकसी राखे पाछें रात्री को वेष्ण- वनसों मिलिके भगवदवातां कीतन अवश्य करनो. और कोइ वेष्णुव न मिले तो एतन्मार्गीय ग्र थनकी टीका देखे एतन्मागींय बेष्णुव्में जायके वार्ता करे सुने. जेसे सेवामें आलस्य न करे तेसे वेभ्णुव मिलाप में आलस न करे दोउ होय तब भक्ति बढ़े जो भगवद सेवा न बने तोह्ठ वष्णुवको संग न छोडे तो देन्य होय या प्रकार श्री श्रीगोकूलनाथजी वेष्णुवसों अाज्ञा किये. । इतिश्री गोकलनाथजीकृत पंचम वचनागृष्न संपूर्णस.




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