लाल तारा | Lal Tra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.58 MB
कुल पष्ठ :
103
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बेनोपुरो-ग्रंथावली ._
देखने ही से संतोष नहीं हुआ। एक वार खल्हान के चारों
ओर वह घूम आया ।
फिर वटुवे से सुर्ती निकाली, चुनौटी से चूना। दो-चार वार
कसके चुटकी लगाई और एक मीठी थपकी दी । अँघेरे में ही, स्पर्श
के द्वारा, कुछ मह्ीन सुर्ती अलग कर नाक में डाली, शेष मंह में ।
नाक से छोींक आई, सिर का वोझ टूर हुआ। सुर्ती की एक
यीक गले के नीचे उतारी, शरीर गरमा गया ।
कया वह सोये ?
उँह, यह भभूका--छाल तारा-उग चुका !. यह तो रामनाम
की बेला है।
गरभ् प्रभाती टेर रहा था-
'लाज मोरी राखह हो ब्रिजराज ! '
८ हि है
यह लाल तारा !
गरभू के कितनें सपनों का साथी है वह !
उसका वह बचपन
लाल तारा देखते ही उसका वाप उसे उठा देता। गरभू उठता,
आँखें मलता, वथान में जाता और तुरत को व्याई उस गुजराती भस
को खोलकर पसर चराने को निकल पड़ता ।
का के
कितनी ही चाँदनी रातों में दप-दप सुफेद साड़ी पहनें चुड़लों
ने उसे फुसलाया !
कितनी ही अँधेरी रातों को काले प्रेतों ने उसे दराया-धमकाया !
विन्तु गरभू जानता था, जब तक बह भेस की पीठ पर हैं
उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता । लक्मी के निकट कहीं भूत-प्रत
आते है !
लोही लगने पर यह लौटता। चारों ओर हरे-भरे खेत, ओस
के मोत्ियों से लदे । उसकी अबाई भेस झूमती, बच्चे के लिए चुकरती,
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