तीस दिन मालवीय जी के साथ | Tees Din Malviya Ji Ke Sath
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.68 MB
कुल पष्ठ :
384
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला दिन
६ अगस्त
स्नान, भोजन और विश्राम करके तीन बजे के 'छगभग मैने
'वाहा कि महाराज से मि्ें और जिस अभिप्राय को लेकर आया
हूँ, उसकी चर्चा छुड्ड ।
कपड़े पहनकर मैं दफ्तर में, जो मेरे कमरे की बाल ही में
है, गया तो महाराज के निकटस्थ विश्वास-पात्र कर्मचारी ठाकुर
शिवधनीरसिंह को दस-बारह आगंतु्कों के बीच में बैंठे पाया ।
आगंतु्कों की वेष-भूषा मिन्न-भिन्न आकारं-प्रकार की थी |
कुछ तो सूटेड-बूटेड थे, कुछ पंडिताऊ पोशाक में थे, और कुछ
सम्प्रदाय-विशेष के थे, उनके माथे पर उनके सम्प्रदाय के
तिछक थे । कुछ यूनिवर्सिटी के हलात्र थे और कुछ केवछ दर्श-
नारी, जो दूर के किसी जिले से आये हुए किसान-श्रेणी के माठूम
पढ़ते थे |
ठाकुर शिवधनीसिह से मादूम हुआ कि अमी कुछ लोग
महाराज से मिल रहे हैं । इससे मैं सबके मिछ चुकने की प्रतीक्षा
में अलग एक कुरसी खींचकर बैठ गया ।
बेठे-पैंठे शाम हो गयी । मिलनेवालों का तॉता टूटता ही
न था । छुद्दावना समय था | बादल घिरे हुए थे। ठंडी हवा
चर रही थी । घुछे हुए; पेड़-पीथे बहुत सुन्दर लग रहे थे |
मैंने सोचा कि तबतक विद्व-बिद्यालय की सेर ही कर आऊें ।
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