पाकिस्तान के प्रारंभिक दिन | Pakistan Ke Prarambhik Din

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Pakistan Ke Prarambhik Din by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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में पाकिस्तान गया १६४७ की चौथी श्रगस्त के दिन--मुझे वह तारीख श्राज भी याद है--मे तीसरे पहर काशी मे श्रपने निवास-स्थान पर कृष्ट पत्रादि देम रहा थाकि टेलीफोन की घटी वजी, श्रौर प्रधान মকঙ্গী का वडा आवद्यक सन्देश मुझे दिया गया कि भारत का पाकिस्तान में उच्चायुक्त (हाई कमिशनर) होकर मुझे फौरन ही कराची जाना है। मातृभूमि के जीवित घरीर को काटकर इसकी सृप्टि की पूरी तैयारी हो चुकी थी। दो ही दिन पहले सविधान सभा के श्रधिवेशन से मै दित्ली से काशी लौटा था। उस समय किसी ने मुझसे इस सम्बन्ध में कोई वात नही की थी । इस सन्देणे से मुझे बडा श्राइचर्य हुआ्ला । स्वराज्य मिलने पर मैंने तो यही सोचा था कि राजनीतिक जीवन से मुझे भ्रव मुक्ति मिल जायगी । मने श्रपने वाकी जीवन के लिए कुछ दूसरा ही कार्य-कम बना रक्सा था। सरकारी पद की तरफ तो मेरा मन कभी भी नहीं गया था। ল मुझे उसकी भ्रभिलापा थी, न मुझे कभी ऐसा ही विचार हुआ कि उसके लिए मुझे निमन्त्रित किया जायगा। मैने उस समय यही कहा कि दूसरे दिन भ्रपना उत्तर दे सकूंगा । श्रवद्यय ही में नही चाहता था कि देश के जिस विभाजन को में बिल्कूल ही वापसन्द करता था, उसका मै प्रतीक बनूं। जब मैने श्रपने कुटुम्बी जनो से परामर्ण किया तो सव की यही राय हुई कि प्रधान मन्त्री के निमन्त्रण को मुभे स्वीकार करना चाहिए, जिससे देश के भावी दोनो भागो के वीच सदभावना स्थापिते करने का प्रयत्न करता रहूँ | मेरे पिता श्री डॉक्टर भगवान्‌ दास जी मेरे वहाँ जाने के विरुद्ध थे । मेरी तरफ से नो सदा ही उनकी अ्रभिलापा यही थी कि जिस प्रकार से उन्होने देश के पुरातन भ्रादर्शों और गास्त्रीय विचारों के प्रचार का सत्कार्य किया, उसी तरह में भी পে ५




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