तीस दिन मालवीय जी के साथ | Tees Din Malviya Ji Ke Sath

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Tees Din Malviya Ji Ke Sath  by रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi

Add Infomation AboutRamnaresh Tripathi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पहला दिन ६ अगस्त स्नान, भोजन और विश्राम करके तीन बजे के 'छगभग मैने 'वाहा कि महाराज से मि्ें और जिस अभिप्राय को लेकर आया हूँ, उसकी चर्चा छुड्ड । कपड़े पहनकर मैं दफ्तर में, जो मेरे कमरे की बाल ही में है, गया तो महाराज के निकटस्थ विश्वास-पात्र कर्मचारी ठाकुर शिवधनीरसिंह को दस-बारह आगंतु्कों के बीच में बैंठे पाया । आगंतु्कों की वेष-भूषा मिन्न-भिन्न आकारं-प्रकार की थी | कुछ तो सूटेड-बूटेड थे, कुछ पंडिताऊ पोशाक में थे, और कुछ सम्प्रदाय-विशेष के थे, उनके माथे पर उनके सम्प्रदाय के तिछक थे । कुछ यूनिवर्सिटी के हलात्र थे और कुछ केवछ दर्श- नारी, जो दूर के किसी जिले से आये हुए किसान-श्रेणी के माठूम पढ़ते थे | ठाकुर शिवधनीसिह से मादूम हुआ कि अमी कुछ लोग महाराज से मिल रहे हैं । इससे मैं सबके मिछ चुकने की प्रतीक्षा में अलग एक कुरसी खींचकर बैठ गया । बेठे-पैंठे शाम हो गयी । मिलनेवालों का तॉता टूटता ही न था । छुद्दावना समय था | बादल घिरे हुए थे। ठंडी हवा चर रही थी । घुछे हुए; पेड़-पीथे बहुत सुन्दर लग रहे थे | मैंने सोचा कि तबतक विद्व-बिद्यालय की सेर ही कर आऊें ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now