सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन | Samajik Evm Sanskratik Jeevan

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Samajik Evm Sanskratik Jeevan  by सन्त कुमार मिश्र - Sant Kumar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चालीस मानते है । राजतरड्रिणी मे इनकी एकमात्र एतिहासिक किन्तु अप्राप्य कृति-नृपावली का उल्लेख करते हुए लिखा गया हे कि कविवर क्षेमेद्ध ने नृूपावली नामक इतिहास ग्रथ लिखा जो काव्य की दृष्टि से उत्तम रचना थी किन्तु ग्रन्यकर्ता की असावधानी के कारण उसका कोई भी अश निर्दाध न बच सका | डॉ० सूर्यकान्त ने क्षेमन्द्र की सम्पूर्ण कृतियो की सख्या उन्नीस मानते हुए उन्हे चार वर्गों में विभाजित किया है । अत क्षेमेन्द्व की सम्पूर्ण उपलब्ध कृतियो मे प्राप्त ऐतिहासिक सामग्री को बड़ी सावधानीपूर्वक अन्य प्रामाणिक ग्रथो से पुष्ठ करके ग्रहण किया जाना चाहिए क्योकि प्राचीन भारतीय विद्वाना मे समाज का वर्णन अपने काव्यात्मक ग्रथो के माध्यम से किये जाने की परम्परा सदैव से रही है । ए० वी० की के अनुसार--क्षेमे्ध अपने सक्षेपो मे रोचकता लाने के प्रयल के स्थान मे अपनी रचनाओं की रूक्षता को दूर करन की दृष्टि से बीच-बीच में सुन्दर वर्णनो का समावेश करना पर्याप्त समझत ह परन्तु इन वर्णनो का कोई महत्त्व नहीं है । इनसे कोई प्रयोजन सिद्ध न होकर ग्रथो का केवल आकार बढ जाता हैं । क्षेमन्द्र के प्रमुख ग्रन्य निम्नवत्‌ है जिनका सक्षेप उल्लेख आवश्यक प्रतीत होता हें । १. रामायणमञ्जरी तथा भारतमञ्जरी-क्षेमेन्द्र ने १०३७ ई० में अपनी पहली कृति रामा- यणमउ्जरी की रचना की थी । ए० वी० कीथ ने इनकी दो अन्य रचनाओ भारतमब्जरी तथा वृहत्कथा मब्जरी को इनके यौवनकाल की रचनाये मानते हुए लिखा हैं कि जो कवि बनना चाहता हे उसे पहले रचना का इसी प्रकार अभ्यास करना चाहिए । इन रचनाओ से उनके समकालीन सस्कृत महाकाव्यो की स्थिति की जानकारी उपलब्ध होती है | २. बौद्धावदानकल्पलता-- प्रस्तुत कृति मे क्षेमेद्ध ने जातक कथाओ के आधार पर १०८ पल्लव लिखे है । इससे ग्यारहवी-बारहवी शती में कश्मीर मे बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार एवं स्थिति के सम्बन्ध में समुचित जानकारी प्राप्त होती है। राज०-पुर्वों० 1 १३ सूर्यकान्त-पूर्वों० पृ० ५३ ए० वी० कीथ-- हिस्ट्री आँव संस्कृत लिटेचर अनु० मगलदेव शास्त्री पृ० ३४३ वही ०... अनु० सरतचन्द्र दास एव प० एच० एम० विद्याभूषण - कलकत्ता १८८८ #०# #० ( . (0 .द




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