साधारण मनोविज्ञान | Sadharan Manovigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56.46 MB
कुल पष्ठ :
462
श्रेणी :
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डॉ. रामगोपाल मिश्र - Dr. Ramgopal Mishr
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राम सूरत लाल - Ram Surat Lal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साधारण मनोविज्ञान | [ गष्याय १ अपनी प्रखर बुद्धि द्ररा मनोविज्ञान के लगभग प्रत्येक चत्र को प्रभावित किया । उसकी महत्ता का छनुमान इस तथ्य के आधार पर लगाया जा सकता है कि इस समय भी जबकि मनोविज्ञान बहुत आगे बढ़ चला है अमेरिका के अनेक मनो वेज्ञान-वेत्ता उसकी क्तियों को पढ़कर प्रोत्सान हित होते हैं । ाधुनिक मनोविज्ञान ने वस्तुतः सबसे महत्वपूर्ण करवट सन १६०४ - न कक कक की की कप इ० के आस-पास ली जबकि पावलोव नास के एक शररीर-्धज्ञानिक ने सा्पच्ी-करण का नियम स्थापित करके मानसिक्र क्रियात्यों का भौतिक आधार खोज निकालने का श्रयन्न किया । पावलोब ने श्रपना यह सापेक्ती-करण का प्रयोग एक कुत्ते पर किया था | पावलोव के सापेक्ीकरणु-सिद्धान्त तथा डार्विन के बिक्रास चाद से प्रभावित होकर वाद्सन नाम के मनोविज्ञान-वेत्ता ने मर्नोविज्ञान कर सदकिस्डननक के समता से मन अथवा चेतना को बिल्कुल निकाल फेंकने का प्रयत्न किया । अब . तक मनोविज्ञान कीं परिभाषा किसी न किसी रूप में चेतना का अध्य यन ही रही थी ओर इसके अध्ययन की एक प्रमुख रीति अन्तर्सिरी .. क्षण थी किन्तु वाट्सन को इसमें अनेक आपत्तियाँ मालूम हुई । उसका विचार था कि इससे हमें क्या मतलब कि चेतना के कितने श्रंग हैं श्र उसका क्या स्वरूप है । हमें केवल प्राणी के व्यवहार से मतलब होना चाहिए और मनोविज्ञान का प्रमुख विषय मानवीय व्यवहार का शध्य- यन होना चाहिये । इस अध्ययन के लिए केवल चिधेयान्सक रीतियों का प्रयोग किया जाना चाहिये । उसके अनुसार मनोविज्ञान ठ्यवहार- विज्ञान ठहरा । वाट्सन के समकालीन एक अन्य मनोविज्ञान-वेत्ता मेग्ड्रगल का १-?६४1०४ २-(००तापं०पा् दे-विद्ाएए बन 5101 प्रू-5घपतए 0. (०98८005ए06855 द-0छु०टपएिट एस ए0010 व 04 9६५ए8४10प7 द.८ 120प21] रद
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