आँसू और मुस्कराहट | Aansu Aur Muskarahat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aansu Aur Muskarahat by खलील जिब्रान - Khalil Jibranमुगनी अमरोहवी - Mugani Amarohavi

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

खलील जिब्रान - Khalil Jibran

No Information available about खलील जिब्रान - Khalil Jibran

Add Infomation AboutKhalil Jibran

मुगनी अमरोहवी - Mugani Amarohavi

No Information available about मुगनी अमरोहवी - Mugani Amarohavi

Add Infomation AboutMugani Amarohavi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
५ झाँखो से टपक रहे थे श्रौर उसके दिल की उमगे पानी की तरह बहू रही थी । वह कह रहा था-- मुहब्बत मेरा मज़ाक उडाती है । मुझे खीचकर वह उस मैदान में लाई जहाँ भ्राश्ाएँ दुगु रा दिखाई देती है । जहाँ झ्रभिलाशाए श्रात्मा का स्वरूप है । प्रेम--जिसे मैंने भ्रपना आराध्य बनाया था वह मेरा दिल तो श्राद्यात्रो के महल मे उठाकर ले गया लेकिन मेरी दुनिया एक गरीब किसान की भोपडी तक सीमित रखी श्रौर मेरे नफ्स (मन) को उस सौन्दये की चारदीवारी मे कैद कर दिया जिसके श्रासपास बडी-बडी हस्तियाँ मँडराती फिरती है ्रौर जिसकी सज्जनता उसे श्रपनी दारण में लेती है श्रच्छा मुहब्बत मैं तेरे इशारों पर चलने को तैयार हूँ। बता मैं क्या करू ? मैं श्राग के भडकते हुए शोलो मे तेरे पीछे चला श्रौर मेरा शरीर भुलस गया । मैंने श्रपनी आँखे खोली तो चारो श्रोर श्रघकार ही श्रघकार पाया । मैने जबान खोलनी चाही तो श्राह्ह प्रफसोस के सिवाय मै कोई वात करने के काबिल नही रहा । भय मुहब्बत मैं दुवल श्रौर ग्रशक्त हूँ श्र तू चतुर श्रौर बुद्धि- मान । फिर तू क्यो मेरे मुकाबले पर श्राती है ? मैं निर्दोप हूँ श्र तु न्यायप्रिय--फिर तू क्यो मुझ पर श्रत्याचार करता है ? तेरे सिवाय मेरा कोई सहायक नहीं फिर तू वयो मुझे श्रपसानित करता है ? तू ही मेरे ग्रस्तित्व का कारण है फिर वयो मुझे श्रकेला छोडता है? तुझे झनुज्ञा है कि यदि तेरी इच्छा के विरुद्ध मेरी धमनियो मे खन दोडे तो तू उसे घरती पर बहादे । यदि तेरे वत्ताये हुए मार्ग के ्रतिरिक्त मेरे कदम उठे तो तु उन्हें काद दे ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now