संत दर्शन | Sant Darsan

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Sant Darsan by पलक निधि - Palak Nidhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्त का आविभाव श्शू ज्ञात नहीं कि अब उस नगर के भग्नावशेष चिन्ह किसी रूप मे *. मिलते हैं या नहीं ! इनके शरीर-जन्म के प्रथम रस राज माता के सन्ताल तो हुईं थी किंतु जीवित नरदती थी | चहद साता सन्त महात्सातं से श्रद्धा रखने बाली मक्त देवी थी | एक वार एक सम्त ने दी साता को आाशीर्वाद दिया कि अब जो तेरे पुत्र उत्पन्न होगा चद जीवित रहेगा परन्तु उस बालक के सिर पर कभी उस्तरा न फिरने पाये, क्योंकि यद्द चालक घर में न रहेगा | महान पुरुषों को अपनी दिव्य दृष्टि हारा किसी सी महान आत्मा के पृथ्वी पर अवतरण शर तिरेधान का कुछ समय यू ज्ञान हो जाया करता है! अतएव वे किसी सुकात्मा सन्त के आने-जाने की प्रथम दी सूचना दे दिया करते हैं । बह राजसाता सन्त के गूढ़ निदेश ( भावी सूचना को ) सम सकी दो--या न ससक सकी हो किन्तु वद्द तो उनके इस आशीबाद से दी तूप हो गई कि पुत्र जीवित रहेगा । निदान छुद् समय के बाद सन्त का आशीवोंद प्रत्यक्ष हुआ, इन्दीं श्री स्वासी जी के शरीर का जन्म-( जिनकी कि यह जीवनी आप पढ़ रहे हैं ) उस साता के गर्भ से हुआ । जन्मते समय इनका शरीर इतना छोटा था कि माता के पति तथा श्व्सुर ने इसके शरीर को देखकर खेद प्रगट करते हुए कहा--इस छोटे- से शरीर से इमारा राज कार्य कैसे चलेगा । यह लड़का तो हमारे किसी काम का नहीं है । माता के हृदय को भला यद्द शब्द केसे प्रिय लगते ? माता ने तो सन्त के आशीर्वाद से यदद संपत्ति प्राप्त की थी । उसे सन्त का आशीषाद याद आ गया होगा | उसने तुरन्त दी उच्र दिया कि “चलो, राज कार्य न कर सकेगा तो न सद्दी फकीरी तो कर सकेगा |”




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