कवि - भारती | Kavi - Bharati
लेखक :
डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra,
श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao,
श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao,
श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
313.95 MB
कुल पष्ठ :
744
श्रेणी :
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डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
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श्री बालकृष्ण राव - Balkrishna Rao
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श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीघर पाठक
“जो छुछ प्रेम-भंश पुथ्वी' पर, जब तब पाया जाता है ,.
सो सब'शुद्ध कपोर्तों ही -के कुछ में आदर पाता है।
घन-वेभव आदिक से*भी, यह थोथा प्रेम-विचार डर
चथा मोह अजशान जनित, सब सत्व झून्य निर्सार |
“चड़ी लाज है युवा पुरुष, नहिं इसमें तेरी शोभा है व
... ऊज तरुणी का ध्यान, मान; मन जिसपर तेरा लोभा है |”
इतना कहते ही योगी के, हुआ पथिक कुछ और ,
'ाज-सहित संकोच-भाव सा आया मुख पर दौर |
अति 'मादचर्य दृश्य योगी को वहाँ दृष्टि अब आता है ,
परम छखित लावणय रूपनिधि, पथिक प्रकट बन जाता है ।
.. ज्यों प्रभात अरुणोदय बेला विमल वर्ण आकादा ,
स्योदी गुस बटोद्दी की छवि क्रम-क्रम हुई प्रकाश ।
नीचे नेत्र, 'उध्ब वक्षस्थल, रूप छटा फैलाता है,
. दाने: दाने: दर्यक के मन पर, निज अधिकार जमाता है ।
इस 'चरित्र से वैरागी को हुआ शान तत्काल ,
महदीं पुरुष यह पथिक विलक्षण किन्तु सुन्दरी बा !
“क्षमा, होय. अपराध साधुवर, दे दयाठ सद्गुणराशी !
भाग्य हीन एक दीन विरहिनी, है यथार्थ में यदद दासी ।
किया, _अशुचि आकर मैंने, यह आश्रम परम पुनीत ,
सिर नवाय, कर जोड़, दुःखिनी बोली वचन विनीत |
“पोचनीय मुम दशा, कथा मैं कहूँ आप सो सुन छीजे ,
परेम-व्यथित अबला पर अपनी दया दृष्टि योगी कीजे ।
केवल प्रथम प्रेरणा के वच्ा छोड़ा अपना गेह ।
थारण किया प्राणपति के दित, पुरुष-वेघ निज देह ।.
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