दोहा मानसरोवर मंजन | Doha Mansarovar Manjan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५३ 2) से युक्त हो तो उसका प्रभाव तथा सौन्द्यं भी क्षीण दो जाता है. । साहि- त्यिकों ने कविता मे श्सेक प्रकार के दोष गिनाए हैं जैसे शब्दगत दोष अधथंगत दोष और लंकारगत दोष । जो शब्द सुनने मे कड़वे हों उतमें श्रुतिकट्त्व दोष होता है । जो व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध हों उनसे च्युतसंस्कारत्व दोष होता है इत्यादि । जो थे अश्लील हो या चार बार कहा जाय उससे क्रमश. श्रश्लीलत्व तथा पुनरुक्त दोष दोता है. इत्यादि । कविता से संचारी तथा स्थायी भावों श्ौर रसों की प्रतीति व्यंग्य द्वारा होनी चाहिए जहां इन का शब्द द्वारा कथन कर दिया जाय वहां रसगत दोष होता है । अलंकाररों में भी अनेक प्रकार के दोष झा सकते हैं जैसे उपमान तथा उपसेय में वचन या लिंग का भेद हो । इन सब प्रकार के ठोषों की सख्या सेकड़ों तक जा पहुंचती है झोर सुकवि लोग अपने काव्य को इन से बचाने का . सदा यत्न करते रहते हूं । छंद--यदि हम इस काव्य विवेचना को छदो-विषयक संकेत के बिना ही समाप्त करदे तो उचित न दोगा। चाहे छद कविता का निवायं श्वग नहीं है तो भी यह उसका श्त्युपकारक अंग श्वश्य है । प्राचीन तथा अझवीचीन काल से झधिकतर कविता छन्दों मे ही लिखी गई है । श्र इसमे सन्देह भी नहीं कि छन्दोद्दीन कविता की अपेक्षा छन्दोबद्ध कविता ्पनी क्मघुरता के कारण अधिक रुचिकर श्र प्रभावशाली हो जाती है । छन्द या पथ उस रचना का नाम है जिसमे वर्णी या मात्राओ की संख्या विराम गति या लय तथा हुक का ध्यान रखा जाता है। माचीनकाल से प्राय दो प्रकार के छन्द प्रयुक्त होते थे। सात्रिक तथा वर्शिक । परन्तु बतमानकाल में और दो प्रकार के छन्दों का आविष्कार हुआ है जिन्हें उसय तथा स्वच्छन्द छंद॒कहते हैं। उभयछद में चर तथा मात्रा दोनो का ध्यान रखकर रचना की जाती है तथा स्वच्छन्दे छन्द में केवल लय कां ध्यान रखा जाता है । समूचे कथन का सार यह है कि कविता उस रचना को कहते है जिते पढ़-सुन कर चित्त ध्यलौकिक ानन्द से मग्न दो जाय और जो गुणों तथा रीति से युक्त दो दोषों से शून्य दो और प्राय. छन्दोवद्ध तथा अलंकारों से विभूषित हो ।




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