नाट्य - निर्णय | Naatya-nirnay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मवयमदपसरसससससकिययसकसाकसयससलसकसमाकाियसायोनिसययदियकयसफावद + हा है, दोनो परस्पर सहयागी एवं सरकारी हैं। झअस्तु, दम मं यढी बात अपने वियय के सम्बन्य में कह सकते है । यद्यपि कुछ लागा का चिचार ऐसा मी हैं कि प्रथप्त सम्मवत: नाव्य -कला की ही सत्ता रही होंगी ओर झागे लोग नाटक-कौतुक करते रहे हारे (न्युनाधिक रूप में ही सही) उन्हीं के आधार पर उनको सुव्यवस्थित एवं सुष्श रूप देने के लिये उनके लिये उपयुक्त नियथों की करपना की गई होगी, और फिर उन नियमों का पालन करके नाव्य-कला में अमीशेचित विकासान्नति के लिये परिप्ाजन एवं परिशोघन किया गया होगा । बस इसी प्रकार नाटक को नियमों से नियंत्रित किया गया होगा । किन्तु कुछ लोगों का यह भी कहना हे कि नाव्यशास्त्र की उत्पत्ति या रचना प्रथस ही हुई ओर ब्रह्मा जी ने इसकी उत्पत्ति की, उसी के धार पर नाव्यकला का निकास एवं विकास हुआ । इसीलिये ताय्यशास्त्र के ईश्चरीय या देवी ज्ञान मान कर पंचम वेद भी. . _. कहा गया हे । अब यदि दम विकास-सिद्धान्त ( 1)060४ 0 1० पप०० 9 के अजुसार तया ऐतिहासिक पघ्रमाणा एवं. प्रत्यक्ष प्रमाणों के भी आधार पर विचार करते हैं तो ज्ञात होता है कि शाजकल जिस रूप में नाट्य शास्त्र, नाटक-श्रंथ, एवं नास्य-ऊला के कौ तुकादि सिलते हैं उसमें बिकास-सखिद्धान्त सब प्रकार ही घडित हो जाता है, और ऐसा जान पड़ता हे कि इनमें क्रमश: उत्तरोत्तर चिकास होता चला झाया हे, और परि चतन का नूतन नतन सदा ही इनके क्षेत्र या रंग संच पर होता रहा हैं तथा अब भी होता जा रहा है ।




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