विपश्यना - पद्धति | Vipashyana-paddhati

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Vipashyana-paddhati by अनागारिक मुनीन्द्र - Anagarika Munindra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११. हो तो बदलने की प्रत्येक अवस्था को वह मन ही मन देखता जाय और धीरे धीरे सारी प्रक्रिया के एक एक तफसील या व्योरे को अवलोकन करता हुआ शरीर के अंगों को सुविघधानुसार यथारुचि बदल ले । हो यह बहुत ही धीरे धीरे होना चाहिए ताकि ध्यान में उस कारण किसी प्रकार का विष्न या विल्ेप नत्ञावे। ध्यान के समय यदि प्यास का अनुभव होने लगे तो साधक नोट करे प्यास लगी है प्यास लगी है । अब वह यदि खड़ा होना चाहता है तो चाहता हू चाहता हू ।. तब खड़ा होने की प्रत्येक क्रिया के एक एक ब्योरे को वह नोट करता जाय और खड़ा हो रहा हूं खड़ा हो रहा हू. की भावना करता रहे । खड़े होकर जब वह सामने देखने लगे तो देख रहा हू देख रहा है को मन ही मन नोट करे श्र अब यदि वह आगे चलना चाहता है तो पहले चाहता हू चाहता ह तौर आगे बढ़े तो चल रहा हैं चल रहा हैं और प्रत्येक कदम कदम पर चलने की क्रिया को नोट करता जाय ।. चलते समय चलने छछी प्रत्येक क्रिया को भली भाति नोट करता रहे-- उदा रहा हू रख रहा हू और तब फिर उठा रहा हूं आगे बढ़ा रहा हू और रख रहा हे अथवा उठा चला रखा। अब जब वह पानी के घड़े को या नल को देखे तो भावना करे देख रहा हे देख रहा हैं रुक जाय तो रुक गया रुक गया हाथ फलाय तो फैला रहा हैं. फैला रहा हूँ ग्लास या कप छू लिया तो शछू लिया छू लिया प्नी में ग्लास को डुबाया या पानी




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