पौराणिक इतिहास सार | Paurinik Itihas Sar

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Paurinik Itihas Sar by अनागारिक मुनीन्द्र - Anagarika Munindra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कु पौराखिक इतिहाससार । नह से कुछ प्रयोजन न था इसोक दृष्टान्त मे एक इतिहास राजा वणन करताहू चित्त उगाकर शवणकरा, जड़ सरतभी कथा । एक समय राजा भरतजां इन्द्र जो दूवता राजाहें उनकी तपस्या करने लगे जब जड़सरतका तपस्या करते तीनसास व्यतीत होगये तब इन्द्रने अपना दशन दया कि विस को देखकर जड़अरतजी बहुत हुसे ओर हसकर यह प्रश्न 1केया कि आप कौनहें जो सझपर कपाकरक अपने दशनादेये झोर सुझ को कौनसा वरदान दीजियगा तब इन्द्रने कहा कि सरे 1लये तसने इतनी कठिन तपस्याकों ओर सुकको बुलाया ओर जब में तस्हारे सम्सख आया तो पछतेहों कि तम कौन हो, हेजड्सरत ! जो तुस्हारो इच्छाहो वह सं प्रणेकरू तब एटा आप सदये किसी चरतके दनेको शाक्ते रखते हूं या किसी से दिलाविंगे तब इन्द्रने उत्तरादिया कि मुझको तो यह दाक्ति नहीं है परन्त न्रह्माजी से प्राथना करूंगा वे तस्हारी कामना परी करेंगे तब जड़सरतजीने कहा कि अंपसे मेरा सनोरथ सिद्ध न होगा इससे अब सें घ्रह्मा जोकों तपस्या करूंगा इतना कहकर फिर समेरु प- वृतकों कन्दरासें जाकर घ्रह्माजीको तपस्या करनेलगे जब चार सास व्यतोतहुय तब घ्रह्माजोने दशुन देकर कहा कि हे एच्र ! त पन्यद्े सं तेरा तपस्या से बहुत प्रसन्नहुआा अपने मनका चाहा हुआ दरदान सॉंगले तब जड़सरतजीने कहा कि आपके पास द्ण्डकूसएडसक 1सवाय आर कुछ पद खलाइई नहां दता सझे आप चरदान कहांसे देंग तब न्न्माजी ने कहा कि तम्हारी जो सुख इच्छा होदे वह सांगो परन्तु सबका विष्याही दाताहैे तब जड़भरतजीने कहा कि अब आपसे सुकसे कुछ प्रयोजन नहीं है विष्सुजी से आपही सांगलूंगा तब बोले कि सेरा दान [निप्सल नहीं होता कुछ तो सांगछो तब जड़सरतने कहा के दाप दयाफरक सुककों यही चरदान दीजिये कि श्रीविष्ण जी पर दशन घ्ावहावे जब आपको दयासे उनका देन पाऊँगा न पे 2 1 उसी




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