रत्न परीक्षा | Ratan-pariksha

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अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta

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भंवरलाल नाहटा - Bhanwar Lal Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका 4 लिये दो अ्न्थ जैन यतियों ने व एक जेनेतर कवि कृष्णदास ने बनाया है। विवरण इस प्रकार है | १--सं० १७६१ मिगसर सुदि ४. गुरुवार को सूरत में अंचलगच्छीय वाचक रतशेखर ने ५७० पद्यों का हिन्दी में रत्नपरीक्षा अन्थ बनाया । उसकी रचना भीमसाहि के पुत्र शंकरदास के लिये की गईं है। इसकी प्रति बीकानेर के बृहत्‌ ज्ञानमडार में है । २-रसं० १८४५ में खरतर गच्छीय तत्वकुमार मुनि ने भ्ावण बदि १० सोमवार को बगदेशवर्ती राजगज के चडालिया गोन्नीय आशकरण के लिए इसकी रचना की है। इन दोनों रचनाओं को इसी ग्रन्थ में प्रकाशित किया जा रहा है । चुतीय ग्रन्थ स० १६०४ कार्तिक बदि २ को बीकानेर के बोथरा गोचीय जोहरी कृष्णचन्द्र जो दिल्‍ली में रहते थे उनके लिये कृष्णदास नामक कंवि ने रचा है । इसकी पद्य संख्या १३७ है। यह कवि श्रीकृष्ण जी का मक्त था। इसकी एकमात्र हस्तलिखित प्रति स्व० पूरणचन्दली नाहर के संग्हस्थ युठके में है । इन तीनों ग्रन्थों का विवरण मेरे सपादित राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज के द्वितीय भाग के पृष्ठ ५६ से ५६ में दिया गया है । रटनपरीक्षा सम्बन्धी अन्य चार अथ मिलते हैं जिनमें से एक की रचना रामचन्द्र नामक कवि ने रत्नदीपिका के आाधघार से की है। यह अशात रचना काल का ७० पद्यों का अ्रन्थ है । सा दामोदर के वंशज घारीमल्ल के लिए इसकी रचना हुई है।




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