दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह | Dakshin Africa Ka Satyagrah

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Dakshin Africa Ka Satyagrah by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ भूगोल मारित्सवर्ग । बह बेन से झागे अन्दर कोई द०मील दुर है | वह समद्र से कोई दो इजार फीट को ऊँचाई पर बसा है । डवंन की झाव-दवा वस्वई से कुड-ऊुछ सिलती है। पर वम्वई से वहाँ को इवा कुछ ठढी जरूर है। नेटाल से झागे और अन्दर वढ़ने पर ट्रा्सवाल श्वाता है। वहाँ की धरती झाज्र संसार को सबसे ज्यादा सोना दे रद्दी दे । वददों छुछ साल पदले दीरे की भी खानें निकली थी । उनसे प्रथ्वी का सबसे बड़ा हीरा निकला था । बह कोइनूर से बढ़ा समका जाता है जो रूस के पास दें । उसका चाम खान के मालिक के नाम पर रक्‍खा गया है शऔर वह क्लीनन हीरा कदलाता हे । परन्तु जोद्दान्सवग के सुबणुपुरी होते हुए तथा द्वीरे की खाने भी उसके नजदीक होते हुए वद्द ट्रासवाल की राजघानी नदी हैं । ट्रा्सवाल की राजधानी पिटोरिया दै बद्द जोद्दान्सवग से ३६ मील दूर है । वीं खासकर राजदरवारी ाद्मी तथा उनसे सस्बन्ध रखनेवाले लोग रददते हैं। इससे यहाँ के वायु-मण्डल को शास्तिपूर्ण कद्द सकते हैं। पर जोद्दान्सवर्ग का वायुमण्डल चहुत अशान्व हे । जिस प्रकार हिन्दुस्तान के किसी शान्तिपूणण देददाव से अथवा छोटे-से शहर से वम्वई पहुँचने पर वर्दी के घूम-घड़ाके ्ौर अशान्ति से हमारा जो घवड़ा उठता है इसी प्रकार प्रिंटोरिया से जानेवालों को जोददात्सवग का दृश्य मालूम दोता है । यदि यह कहें तो अत्युक्ति न होगी कि जोददान्सवर्ग के लोग चलते नदी बल्कि दोढ़ते हैं । किसीको किसीकी तरफ देखने भर की फुरसत नहीं रदती और सब लोग इस फिराक में डूबे रहते हैं. कि थोढ़े-से-थोड़े समय में अधिक-से-अधिक घन किस तरह कमा हों । ट्रान्सवाल को छोड़कर झऔर भी न्दर पश्चिम में यदि हम जायें तो आारेज फ्री स्टेट झथवा थारेंजिया




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