दक्षिण भारत के पर्यटन स्थल | Dakshin Bharat Ke Paryatan Sthal

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Dakshin Bharat Ke Paryatan Sthal by रूपसिंह चंदेल - Roop Singh Chandel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दक्षिण भासत कर पर्यटन स्थल / 417 पग्विार्‌ सेकण्ड क्लाम मे ओर आधा एसी मं जीर दोनो कं मध्व पन्द्रह-सालह दिव्वौ का अन्तराल । रात मं दस वनै के वाद लिक बन्द । किसी को कोई परेशानी हो तौ? विचार मधन चल ही रहा था कि आगरा आ गया | सच यह है कि मथुस कब आया-गया, मुझे पता नहीं चना। तनाव ठिमाग में बरकरार था। आगरा आतै-आते हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सेकेण्ड क्लास में ही यात्रा कर लेते हैं। आधे-इधर-आधे उधर ठीक न होगा। लेकिन गाडी के आगरा छोडते ही मन ने पुन. करवट बढली ! एक वार चलकर देख लेना चाहिए . हो सकता है तीन वर्थ मित्र जाएँ। तब काम चल्न जाएगा। और मैं भटनागर से मिलन जाने के लिए उठ गया। भटनागर मुझे देखते ही बोला, “अच्छा हुआ आप आ गए। मै तो आपको ख़बर भेजने वाला था।” कण्डक्टर का यह कथन मुझे राहत दे गया। “फिर कितनी बर्थ दे रहे है आप मुझे |” “तीन तो दे ही दूँगा। “चौथी भी यदि दे सके .।'' “आप सामान उठाकर आ जाएँ . | “आ जाऊें, २! “निश्चिन्त होकर आएँ...मेने कह तो दिया है।” ओर मै उसे धन्यवाद दे एस.श्री तक पहुँचने के लिए गाडी की घड़घड़ाहट ओर डिव्यो के हिचकोले झेलता-खाता तेजी से दौड़ रहा धा। लग रहा था कि कोई बडी उपलब्धि हाथ लगी है। डिब्बों मे दोपहर का भोजन करते या आराम करते यात्री मुझे देख सोचते होगे कि आखिर इसे हुआ क्या है. .पागलों की भाँति आना-जाना। जब एस श्री में पहुँचा हॉफ रहा था। लेकिन चेहरा खिला हुआ था माना सारा कष्ट डिव्वों के बीच दीडते निचुड़कर बह गया था। पत्नी ने पहुँचते ही पूछा, “मिल गई? “हों, अभी तो त्तीन का वायदा किया है... हो सकता है चौथी भी मिल जाए ए' और मैं सामान समेटने लगा। वच्चे अपना-अपना सामान लादने लगे। अटैचियाँ मेरे हिस्से थीं। पत्नी के हिस्से पानी से भरा आठ लीटर का मयूर जग और कंथे पर एक बैग শ্রা। लेकिन जग उसकी परेशानी का कारण बन गया। एस.श्री से एस-फोर में संधि-स्थल को पार करना जग के साथ कठिन हो गया मुझ लगा यदि इसके साथ यह आगे




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