सीता - चरित पर आधारित आधुनिक संस्कृत महाकाव्यों का एक आलोचनात्मक अध्ययन | Sita Charit Per Adharit Adhunik sanskrit Mahakavyo Ka Ek Alochnatmak Adhyayan

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Sita Charit Per Adharit Adhunik sanskrit Mahakavyo Ka Ek Alochnatmak Adhyayan  by श्री स्वामी दयानन्द - Sri Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दितीय सन्दर्म में मित्रविन्द यज्ञ का गोनम राइगण के पास से वढदेह नमक के पास बाने का उल्छेख है । झइस सन्दर्म में जमक अनेक बाधर्ण्यों में से याज्वल्ब्य को अधिक विद्वान देखकर उन्हें रक सहम्र गायों को मुरस्कृत काते ई श्तपथ बादण्य के तीसरे सन्दर्म से नमक याशवल्क्य सहित तीन ड़ाझणणों सहित अरिनहोत्र के सम्बन्ध में सविस्तर निज्ञाप्नो प्रकट करते हैं तीनों बासण्यों में याज्ञवल्क्य अश्निहोत्र के सम्बन्ध में बमक को अधिक विस्तार से सममाातते हैं किन्तु फिर मी जमक उनके उचर से सर्वात्मना सन्तुष्ट नहीं हो पातें तो वे स्वयं ही अर्निहोंत्र सम्बन्धी एहस्य से अधिक विस्तारपृर्वैक स्पष्ट करने का सफल यत्न काते हैं । तथा च याज्बल्क्य से यथेष्छ जनक प्रश्न मी करते हैं । श्तपथ बाण के चतुधे सन्दर्म में बमक अनेक याबकों कौ प्रचुर दक्षिष्पा प्रदान करकें रुक विशाछ यज्र का आयोजन करत हैं और उस यज्ञ में जाये ये सवोच्च विदान को रकसहस़ गायों सै पुरस्कृत करने का क्वम मी देते हैं । जनक सम्बन्धी शतपथ बाझण्ा के उक्त चार सनक में बुचम रवें चतुथै सम्द्म का उल्ठेख बेमिमीय बाण स्व बहदारण्यकौपमिवाइु में सी किचितु यरिव्तैन के साथ शिता है । थ श् शाखायम आारण्यक में मी नमक का उल्ठैस कवि गया है | तैची री या रण्यक में कृष्ति की अधिष्ठात्र देवी के रुप में सीता का उल्ठेख करते सता ला एल एलता तह कंधों तक कशता वा वेकशनलि गदर हद बतकशकार सका लक कहा ला स्वर ₹- ज्तपथ डफलण्ा १९1 ४ 1 ३ 4 २9 ₹ बढ़ीं रह 1हैं। र1। १-१9 इन बह रह 1 ३14 १ ३ शखिायन आरण्यक है । १




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