महाभारत के पात्र | Mahabharat Ke Patra

Mahabharat Ke Patra  by आचार्य नानाभाई - Achary Nanabhai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राधघेय .. बतुम्दं यह कहाँसे मिछा ? ्तुम्दीं वताओ- ९ तुम्हारे हाथ में तो वालक है भगवान्‌ ने सचमुच मेरे लिए यह खिलोना मेजा है ? अधिरथ यह स्वप्न हो नहीं दे ? मेरी आँखें मुक्त धोखा तो नहीं दे रही हैं? देखो मुकते धोखा मत दूना | ? नहीं नहीं । मेरे हाथ में यह बालक है ओर इसे में तुम्हारे ही छिए लाया हूँ । यह लो | . राधा तो पागल जैसी हो गई । उसने जल्दी से वाउक अपने हाथ में हे लिया । उसे अपनी छाती से चिपका लिया। उसका सिर सूंघा उसकी आँखों पर धीरे से चुम्मा लिया और इसके सारे शरीर पर अपना कोमल हाथ फेरा । रा तुने मेरे घर में उज्ञाठा कर दिया । इस मंघेरे कमरे में दीया जला दिया है। वदन जाओ आज सारे मुद्दल्ले में शकर चौँटो | दी लेकिन अधिरथ यह तो वत्ताओ कि तुम्दें यद मिला कहाँ से ? राधा की बहन ने उत्सुकता से पूछा । हाँ हाँ चेटा तू कहाँ से आया ? चतावेगा ? राधा ने लाड़ से चाठक की ओर देखकर प्रश्न किया अधिरध त्रोला-- में अभी शाम को नदी के किनारे घूम रहा था कि नदी के प्रवाह में मंने कुछ तैरता हुआ देखा । एं--व्या कहा ? इसे किसीने बहा दिया था १




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