गीता - वाहिनी | Geeta - Wahini

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Geeta - Wahini  by श्री सत्यसाई बाबा - Shri Sathya Sai Baba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शी कट गीता झ्लाहिनी लिये? युद्ध तो अवश्यभावी है । लड़ाई के बादल घिर आये हैं और गर्जना कर रहे हैं । सामने ततर शत्रु युद्ध प्रारम्भ होने के क्षण के लिए उत्सुक हैं । उन्होंने तुम्हारे साथ अगणित अन्याय और कूरतापूर्ण व्यवहार किये हैं और अब जिस भूमि के तुम अधिकारी हो उसे भी वे छीनना चाहते हैं 1 अब तक उन्होंने तुम्हें जितना भी कष्ट दिया सत्य-पथ से बिना हटे तुमने सहन किया । तुमने सभी शर्ते और निर्वातन की अवधि भी पूरी की समझौते के हुम्हारे सब प्रयल भी निष्फल रहे तुम युद्ध रोक नहीं सके । जहाँ तक उचित था हमने माना लेकिन अब युद्ध ही एक मार्ग है जिसके द्वारा दुर्योधन के-अभ्याय के प्रति उसकी आँखें खोली जा सकती हैं बहुत सीच-विचार के बाद युद्ध करने का निर्णय हुआ था । ग्रह कोई कोध की उत्तेजना और शीघ्रता में किया हुआ प्रस्ताव नहीं है | उत्तरदायित्व को समझने वाले वृद्धजनों ने अच्छी प्रकार भला-बुरा तौल कर युद्ध की अनिषार्यता कामि्णय किया है । अपने भाइयों सहित तुमने यह स्वीकार किया और इस निर्णय की संराहना भी की । तुमने इस युद्ध की तैयारी भी उत्साह से की । औरों से अधिक तु्हीं इसमें लीन थे । और अब इस प्रकार तुम्हारा बदल जाना कितना जनुचित हैं । क्षण भर में तुम पर युद्ध नहीं टूट पड़ा है । तुम युद्ध की सामग्री पहले से जुदा रहे थे । याद कंरो कि भगवान्‌ शिव से पाशुपत अस्त्र प्राप्त करने के लिए तुमने कितना संघर्ष किया भूखे रहे जंगली जड़ों और फलों को खाया और फिर देवाधिदेव इन के लोक तक इस युद्ध के लिए दिव्य बा्ों को प्राप्त करने यये मैंने सोचा था कि दुष्ट कौरव वंश के नाश का उचित समय आ गया है लेकिम तुमने तो यह शोक गीत अलापना प्रार्प कर दिया यह अशुभ स्वर क्यों निकालते हो? किस शास्त्र में ऐसी व्यवस्था निर्दिष्ट है ? क्षत्रिय होने के कारण धर्म समर्थन और न्याव की रक्षा के जो तुम्हारे कर्तव्य हैं उन पर विचार करो । तुम्हारी वीरता साहस और दृढ़ता ही तुम्हारा धन है । लेकिन तुम तो इस विचित्र मोड में धिर गये हो जो करुणाजनक और अनुचित है | ऐसी कायर्ता तुमरे लिए और कुहारे यशस्वी पूर्वजों के लिए भी लज्जाजनक है । विशेकार है हुं जिसने झक्रय जाति का इस प्रकार निरादर किया तुम्हारे




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