विवेकानन्द साहित्य जन्मशती संस्करण खंड 3 | Vivekanand Sahitya Janmshati Sanskaran Khand-iii

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Book Image : विवेकानन्द साहित्य जन्मशती संस्करण खंड 3  - Vivekanand Sahitya Janmshati Sanskaran Khand-iii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“हरेक अपने क्षेत्र में महान है सांख्य मत के अनुसार प्रकृति--सत्त्व, रज तथा तम--इन तीन दक्तियों से निर्मित है। भौतिक जगत्‌ में इन तीन झाक्तियों की अभिव्यक्ति साम्यावस्था, क्रियाशीकता तथा जड़ता के रूप में दिखायी पड़ती है। तम की अभिव्यक्ति अन्थकार अथवा कम्मंशून्यता के रूप में होती है, रज की क्मंशीलता अर्थात्‌ आक- षंण एवं विकषण के रूप में, और सत्त्व इन दोनों की साम्यावस्था है। प्रत्येक व्यक्ति में ये तीन शक्तियाँ होती हैं। कभी कभी तमोगुण प्रवल होता है, तव हम सुस्त हो जाते हैं, हिल-डुल तक नहीं सकते और कुछ विशिष्ट भावनाओं अथवा जड़ता से ही आबद्ध होकर निष्क्रिय हो जाते हैं। फिर कभी कभी कमेंशीऊत्ता का प्रावल्य होता है; और कभी कभी इन दोनों के सामंजस्य सन्व की प्रवलता होती है। फिर, भिन्न भिन्न मनुष्यों में इन गुणों में से कोई एक सबसे प्रवल होता है। एक मनुष्य में निष्क्रियता, सुस्ती और आलस्य के गुण प्रवछ रहते हैं; दूसरे में क्रिया- वीलता, उत्साह एवं शक्ति के, और तीसरे में हम शान्ति, मृदुता एवं माधु्य का भाव देखते हैं, जो पूर्वोक्त दोनों गुणों अर्थात्‌ सक्रियता एवं निष्क्रियता का सामंजस्य होता है। इस प्रकार सम्पूर्ण सृष्टि में--पशुओं, वृक्षों और मनुष्यों में--हमें इन विभिन्न शर्क्तियों का, न्यूनाघिक मात्रा में, वैशिष्टयपूर्ण अभिव्यक्ति दिखायी देती है। कर्मयोग का सम्बन्ध मुख्यतः इन तीन दाक्तियों से है। उनके स्वरूप के विषय में तथा उनका उपयोग कंसे करना चाहिए, यह वतलाकर कमंयोग हमें अपना कायें अच्छी तरह से करने की शिक्षा देता है। मानव-समाज एक श्रेणीवद्ध संगठन है । हम सभी जानते हैं कि सदाचार तथा कतंव्य किसे कहते हैं; परन्तु फिर भी हम देखते हैं कि भिन्न भिन्न देशों में सदाचार के सम्बन्ध में अलग अलग धघारणाएँ हैं । एक देश में जो बात सदाचार मानी जाती है, दुसरे देश में वही नितान्त दुराचार समझी जा सकती है। उदाहरणायथ, एक देश में चचेरे भाई-वहिन आपस में विवाह कर सकते हैं, परन्तु दूसरे देश में यही वात अत्यन्त अनैतिक मानी जाती है। किसी देश में छोग अपनी साली से विवाह कर सकते हैं, परन्ठु यही वात दूसरे * अनैतिक समृूझी जाती है। फिर कहीं कहीं लोग एक ही वार विवार हैं और कहीं कहीं कई वार, इत्यादि इत्यादि । इसी प्रकार, सत




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