तकषी की कहानियां | Takshi Ki Kahaniyan

Takshi Ki Kahaniyan  by वी. डी. कृष्णन नंपियार - V. D. krishnan Nampiar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वी. डी. कृष्णन नंपियार - V. D. krishnan Nampiar

Add Infomation AboutV. D. krishnan Nampiar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दो दाब्द मुझे ठीक याद नही कि मैंने कितनी कहानियाँ लियी हैं । करीब आठ सौ होंगी । लगभग पाँच सौ कहानियाँ विशेषांकों और पक-पत्रिकाओ मे बिखरी पडी हैं। तीन सौ कहानियों की एक सूची अभी एक मित्र ने भिजवायी थी । उसमे ऐसी कई कहानियाँ नही आ पायी है जो मेरे मन मे स्थान पा गयी है तब बहू सूची भपूर्ण ही है । इस संकलन में मेरी ऐसी कहानियां दी जा रही हैं जो मेरे प्रिय दोस्त ने चुनी हैं और मेरे आग्रह पर अनूदित की गयी है । साहित्य प्रवर्तक सहकारी संघ द्वारा प्रकाशित मेरी चुनो हुई कहानियाँ (१९८५ में प्रथम संस्करण) मे से फिर चुनाव करके बीस कहानियाँ इस संकलन के लिए ली गयी है जो दृष्टि से १६३४ से १६८१ तक की अर्द्धशती में समप-समय पर लिखी गयी हैं । कुल २१ कहानियाँ इसमे जा रही हैं । इन्हे हिन्दी मे लाने का श्रेय भारतीय ज्ञानपीठ भर मित्र डॉ० बी० डीो० कृष्णनु नम्पियार को जाता है । पहले मैं कहानीकार के रूप में मलयालम में आया था । उसी समय मैंने उपन्यास भी लिखें थे । फिर भी पाठकों को मेरी कहानियों पर अधिक मोह रहा था । उपन्यासकार की मुहर वैसे बहुत जल्दी मुझ पर लग गयी और कहानीकार की भपेक्षा उपन्यासकार आगे चला गया । कया आगे चला गया ? दुनिया ही इसका निर्णय करे हिन्दी में मेरे कुछ उपन्यास पहले ही अनूदित हो गये हैं। हिन्दी की कई पत्न-पश्रिकाओं में समय-समय पर मेरी कई कहानियों का अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है। पर पुस्तक रूप में प्रकाशित मे रा प्रथम कहानी-संकलन यही है । भारत की राष्ट्रभापा के द्वारा कहानीकार के रूप में मैं अब आप लोगों के सामने आ गया हैं। मेरे प्रिय एक साहित्यिक-माध्यम से मेरा यह रंग-प्रवेश मुझे बहुत अधिक माह्लाद दे रहा है । इस सकलन की सभी कहानियाँ ग्रामीण जीवन पर माधारित है। यह जान-वूझकर किया प्रयास नहीं मे री सभी कहानियाँ ग्रामीण जीवन पर ही गाधारित हैं । शायद विविधता के लिए लिखी गयी कहानियाँ परखते पर भी इस पृष्ठभूमि पर लिखी गयी कहानियाँ नही मिलेंगी । अपने विशाल और सम्पन्न देश की राष्ट्रभापा के पाठकों के समझ अपनी यह छोटो भेंट समपित कर रहा हूँ । यह एक जंगली फूल होगा निर्गन्ध कुमुम होगा पर भारतमाता के पूज्यपादों मे अपने हृदय के साथ इसे अपित कर रहा हूँ । तकपो --सकयपो शिवशंशर प्िल्से २९ अक्टूबर १६८४ मी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now