भारतीय मूर्ति कला | Bharatiya Murti Kala

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Bharatiya Murti Kala by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय मुर्ति-कला भी छोड़ गया है जो आजकल मी सुन्दर ही कही जायगी । इसी ग्रकार, किंतु उक्त समय से कई हजार वर्ष इघर, उसने उस समय के टू ओं की श्राकृति भी श्रस्थि पर बनाई है । ये कृतियाँ मूर्तियां की प्रपितामही कह्टी जा सकती हैं । हु दे, ई पू० शवीं ६ढठीं सदस्ताब्दी से नागरिक सम्यतता का ्ारम्भ दो गया था |. उस समय से मनुष्य मिट्टी, धातु, पत्थर और पत्थर पर गच ( पलस्तर ) को हुई पूरी डौल वाली मुर्तियाँ बनाने लग गया था। ताँवे, कॉसे, सींग, अस्थि, दाधीदॉत श्औौर मिट्टी पर उभारकर, वा. उभरी हुई रूपरेखाएँ बनाकर वा इन रेखाओं के खोदकर तर तरद की श्ाकृतिवाले टिकरें वा छिक्फे की सी काई चीज भी वह बनाता था । किंतु उन दिनों जे जातियाँ श्रपे्षाहत पिछुड़ी हुई थीं वे भी सानव-भाकृति का मान करानेत्राली ताँवे की पीटी हुई मंटी चादर की आफकृतियाँ बनाती थीं जिनके झँवठ का कुछ अंश उठा हुआ होता था (देखिए फलक-१क) 1 ये ्ाकृतियाँ पूजा के लिये वनाई गई जान पढ़ती हैं 1 हु४. मूर्ति बनाने में झ्ारंभ से दी गनुष्य के मुख्यतः दो उद्देश्य रदे हं। पक ता किसी स्मृति के वा अतीत के जीवित बनाए, रखना, दूसरे श्मूर्त को मूर्त रूप देना, अव्यक्त के व्यक्त करना श्थोत्‌ किसी भाव के आकार प्रदान करना |. यदि इम सारे संसार की सच काल की प्रतिमाश्ओं का विवेचन करें तो उनका




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