हिंदी साहित्य सर्वस्व | Hindi Sahitya Sarvasva
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
80.81 MB
कुल पष्ठ :
1054
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. सीताराम चतुर्वेदी - Pt. Sitaram Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध हिन्दी-साहित्य-सवंस्व ाहिकनटफनटफिपाथिजनजााशााााााााााााााााानााााााााााााानाााााणायल्एस्शााााणयल्एयएयस्एस्ए-एनानाणाणाना सबसे पहले रूसोने यह बात छेडी कि जैसे लोगोने झापसभे मेल-जोल बढाकर एक दूसरेका बचाव करनेके लिये एक दूसरेके काममें हाथ बटानेके लिये बनी-बिगडीमे एक दूसरेका साथ देनेके लिये समभोता किया और समाज बनाया वैसे ही लोगोने झापसभ समभोता करके बोलियाँ भी बना लीं । रूसोकी यह बात किसीको ठीक जची नहीं क्योंकि जिन लोगोको कोई भी बोली बोलनी नददीं आती थी उन्होने झापसभे कोई सममोता किया दी केसे दोगा । कोन्दिलाकने एक नई अटकल लगाई कि सबसे पहले एक डानबोल तक झादमी झौर एक अनबोलती ख्री झापसभे मिले होगे छोर एक. दूसरेको झपने मनकी तडपन चाव और वाह समभानेके लिये उन्दोने जोः हाँ हूँ या चिज्ञपो की होंगी बद्दी पहली बोली बनकर निकल पड़ी द्ोमी ॥ फिर धीरे-घीरे इन बेढगी चिह्लपोवाली बोलियोमे उतार-चढावके साथ उँचे-नीचे बोलनेका ढग भी आने लगा होगा । धीरे-धीरे उनके बच्चोकीः बोलियोमे उतार-चढ़ाव बढता चला गया द्ोगा और इस ढह्से कुछ बीढ़ियोमे चलकर उनके नाती-पोतोने झपने-अझपने सनकी बात समभानेके- लिये बहुत्से नये-नये शब्द झोर बोलनेके बहुतसे ढक्क निकाल लिए होगे जिससे धीरे-धीरे बोली बन गई । अठारददवीं सदीमे सुसम्लिख नामके जमेंनने कद्दा कि बोली मनुष्यने नददीं निकाली है वद्द तो उसे सीधे इडवरसे मिली है। योदान गोटफ्रीड देडेरने इस बातको काटते हुए कहा कि यदि इश्वरने बोली बनाइ दोती और उसे लाकर मनुष्यके मुँहमे भरी दोती तो बह इतने रंड्व-दज्ञ की बेसिर-पेरकी और ऊटपटाँग न द्ोती जैसी शाज-कलकी बहुत-सी बोलियाँ दिखाई पढ़ती हैं । हेडेंर मानता है कि बोलियाँ मनुष्यने बनाई नहीं हैं । जेसे-जैसे मनुष्यका काम बढ़ता गया और उसके. रद्दन-सददनमे नयापन झाता चला गया वेसे-वैसे बोलियाँ भी बढ़ती धनपती ओर फेलती चली गईं । सन् १७८४ मे बलिन अकाडेमीने बलिनके डी० जैनिशको भाषा- थरीक्षण के लिये पुरस्कार दिया जिसने यद्द बताया कि संसारकी जो
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