कथासरित्सागर खंड - २ | Kathasaritsagar Khand-2
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.39 MB
कुल पष्ठ :
1079
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भुवनेश्वरनाथ मिश्र (माधव) - Bhuvaneshvarnath Mishra (Madhav)
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सप्तम लम्बक चे
इस प्रकार, बहुत दिन ब्यठीत होते पर मी उसे पुत्र की प्राप्ति महीँ हुई । एक बार उसे इस
बात पर गम्मीर चिस्ता उत्पन्न हो मई ।॥।२७॥।
उसे जत्वस्त चिस्तिप्त देखकर राती अकंकारप्रमा मे उसकी सदासी का कारण
पूछा ॥ रेट!
प्रह्स सुनकर राजा ने कहा--देखि । मुझे समी प्रकार की सम्पत्ति प्राप्त है किस्तु
एक पत्र का झमाव मेरी चिम्ता का कारण हो रहा है ॥२९॥।
मैंने एक पुत्रह्वौत सत्वबात्ू मनुष्य की कथा सुनी थी उसके स्मरण आने पर आज
चित्ता बढ़ गई है ॥३ !।
बहु कैसी कथा है? -- इस प्रकार राती के पूछने पर राजा मे संक्षेप से बह कभा इस
प्रकार सुवाई ।। ३ १!
राज सत्चपील कौ कथा
चित्रकट नामक मयर में शाइयलों की देवा में मिरत शाहबबर तामक यपार्ष नामवाला
शाजा था || दे रे।।
'पसको सत्त्वशी्त नामक एक बिजयी और पुद्ध में सहायता करनेबाल्मा मषत सेवक था ।
उसे राजा प्रतिमाप्त एक सौ स्वर्भ-मुद्दा बेतत के रूप में देता था ३ 1
किस्शु परम उदार उस सत्त्चसीरू के सिए इतना धन पूरा नहीं होता था क्योंकि पुत्र म
होने के कारण बह उस बन को दान कर देता था ॥ १४
बह सोचता था कि बिधि ने मेरे मनौधितोद के सिए एक पुत्र सही दिमा केचकर दान
देने का स्पसन दिया बहु सी बन के जिना ॥ ३५॥।
संसार में पुराने और झूखे बुह या पत्थर का थाम होता बच्छा है किन्तु बात को
स्यसती होकर वर होना अच्छा नहीं ।३९॥।
ऐसा सोचते हुए त्त्वशौल ने घूमते-पामते ईबयोग है अपने उचात में कोप (सजाता)
इाप्ठ लिया १0
अपने नौकरों कौ सद्दायता से बह सत्त्चपौरू अपरिमित स्वर्ग और शलों ते मरे हुए खजाने
को पते पर उठवा के थया।॥।३८॥।
इतना पन प्राप्त करके बह युल-भोग करता शान देता शौर भृत्यों तथा मिर्जा को
बॉटता हुआ सुद से रहने लगा (1१९१
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