निराला का परवर्ती काव्य | Nirala Ka Parvarti Kavya

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Nirala Ka Parvarti Kavya by रमेशचंद्र मेहरा - Rameshchandra Mehara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्ववर्ती और परवर्ती काव्य के विभाजन गा औधित्य और सार्थवत्ता ] [ १६ सोग-व्यवहार रहा है और उसके अनुसार सेसको को निर्माणशैली पौन-कौन से नये रुप घारण करती है, यह अध्ययम तो उसी समय हो सबता है । यह ठीक है कि देश और काल की सापेक्षिक भूमिवाओ पर काव्य था अनुशीसन करने पर यदूत सी नई थातें ज्ञात हो सपती हैँ, जिनवा उपयोग हम विसुद्ध साहित्यिक विवेचन में बर्‌ सबते और इस प्रकार इति के आस्याद को और भी सजय बना रातते हैं । परस्तु उसके लिये अधिक विस्तृत अध्ययत और स्मृति-शक्ति मी आवश्यकता है । बिना. इसके हग इस प्रकार के विवेचन में बदुत दूर हक आगे नहीं जा सबते । किसी कवि की आरभिक रचनाओ से आगे बढ़कर उसकी प्रौढ़ रचनाओ पक पहुंचना भी तुलना का ही बाय है । इसी प्रकार एक ही युग के दो या अधिक कपियों का अनुशोलन भी तुंसनात्मक भूमिया पर ही हो सबता है। जव हम किसी पूर्व-पुय की कृति से किसी परतर्ती युग को छृति वा अन्तर देखने बैठते हूँ, तय अन्य तत्वों के साथ देश और कान के यदनते हुपे तत्व हमारे सामने भा ही जाते हैं। इससे साहित्यिक इतिहास के निर्माण में, तुलनात्मक विवेचन में, परम्परागत णलियों * और जीवन-म्यवहारो की जिज्ञता मे, सहायता तो मिलती ही है, विशुद्ध साहित्यिक सौत्दई की परख में भी योग प्राप्त होता हैं । कु कालगत भ्रध्ययन की उपयोगिता कभी-कभी ऐसे कबियो का काव्याध्ययन भी हमें प्ररना पड़ता है, जो आरभ में कुछ बहुत सुन्दर कृतियाँ दे जाते हूँ, पर कुछ ही वर्षों मे उनके काव्य में क्षीणता जाने लगती है । कभी उपदेशात्मकता और कभी छृचिम नैतिकता का माममण होने लगता है । पभी अकालवूद्धता दिखाई देने लगती है । यह सब विकार तभी अच्छी तरह जाने और परखे जा सकते है, जय हमे कवि की जीवनी का निकट से ज्ञान ही | यो गिसी श्रेष्ठ भावव' को तो बबिता पढ़ते ही उसकी गहराइयो का अथना हुलवेपन का आभास मिल जाता है, पर इस गहराई या हलकेपन का कारण वया है ? कवि के व्यक्तित्व में बौन से मोड कब आये हैं * इनका परिचय मिलने पर श्र प्ठ भावक वो भी अधिक स्पष्ट और निर्धा त अभिज्ञता होती है, किन्तु सामान्य भावक के लिये तो इन वाह्म स्थितियों नौर परिचालक शक्तियों का जानना किसी कवि के अध्ययन में भ्त्यस्त आवश्यक हो जाता है । भय यह नहीं है कि इन थातो की जान- कारी से कविता के मूल प्रभावों के अव्ययन मे बाधा पड़ेगी । भय यह है कि इस जानकारी के बिना कम-से-कम सामान्य पाठकों को, उस कविता के मूल प्रभाव का अभिज्ञान ही न होगा । कवि अनेक प्रकार के होते हैं । बहुत थोडे कवियों की काव्य-रचना आदि भले अत तक एक सी विकासमान रहती है । अधिकतर कवि अपमान भूमिका पर काव्य- रचना करते हूँ । उनको कु कविताएँ बहुत सुन्दर और कु बतिशय सामात्य होती




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