भारतीय लिपियों की कहानी | Bhartiya Lipiyon Ki Kahani

Bhartiya Lipiyon Ki Kahani by गुणाकर मुले - Gunakar Mule

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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20 / भारतीय लिपियों की कहानी (क्यूनेफॉर्म ) लिपि का नाम दिया गया है (चित्र 1-2 और 1-3) । इस लिपि का उद्घाटन भी पिछली सदी के प्रथम चरण में ही हुआ है । किन्तु ताम्रयुग की एक और छिपि है जिसका अभी तक उद्घाटन नहीं हो पाया है। यह है सिन्धु सभ्यता की लिपि । प्राचीन भारत की इस सिन्धु सभ्यता का उद्घाटन 1920 ई० के बाद हुआ । 1921-22 में मोहनजोदड़ो और हड़प्पा नगरों की खोज हुई । ये स्थल अब पाकिस्तान में चले गये हैं । लेकिन 1947 ई० के बाद काठियावाड़ राजस्थान पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिन्धु सभ्यता (हड़प्पा संस्कृति) के करीब सौ नये स्थल खोजे गये हैं । सिन्धु सभ्यता के विभिन्‍न स्थलों से करीब दो हजार मुहरें मिली हैं जिन पर लिपि-संकेत तथा पशु-पक्षी-वृक्ष की आकृतियाँ उकेरी हुई हैं (चित्र 25-1) । सिन्धु सभ्यता के किसी भी स्थल से ऐसा कोई लेख नहीं मिला है जिसमें बीस से अधिक संकेत हों । पिछले करीब पचास सालों में देश-विदेश के अनेक विद्वानों ने सिन्धु लिपि के उद्घाटन के प्रयत्न किये हैं किन्तु अब तक किसी को भी सफलता नहीं मिली है । कुछ विद्वान इस लिपि में भाव-संकेतों और अक्षर-संकेतों का मिश्रण खोजते हैं तो कुछ विद्वान इसे एक वर्णमालात्मक लिपि मानते हैं । लेकिन थे सारी परिकल्पनाएँ हैं । अभी तो हम यह भी नहीं जानते कि सिन्धु सभ्यता के लोग कौन-सी भाषा बोलते थे और सिन्धु लिपि में कौन-सी भाषा छिपी हुई है । कुछ पुरालिपिविद सिन्धु लिपि में द्रविड़ परिवार की प्राचीन तमिल भाषा खोजते हैं तो कुछ पुरालिपिविदों का दावा है कि इसमें प्राचीन वैदिक भाषा छिपी हुई है । जो भी हो ता्रयुग की इस सिन्धु सभ्यता की लिपि का उद्घाटन होना अभी बाकी हैं । अनेक पुरालिपिविदों ने इस लिपि के उद्घाटन के लिए जो प्रयास किये हैं उनकी जानकारी हम एक स्वतन्त्र प्रकरण में देंगे । करीव साढ़े तीन हजार साल पहले लौहयुग की शुरुआत हुई । ईसा पूर्व चौदहवीं सदी में पहली बार हम पश्चिमी एशिया के हिती या खत्ती शासकों को लोहे के हथियारों का इस्तेमाल करते देखते हैं । लोहा ताँवे या काँसे से अधिक कड़ी धातु है । लोहे के औजारों से घने जंगल साफ करना संभव हुआ कृषिकर्म का विकास हुआ और उत्पादन कई गुना बढ़ा । लोहे के औजारों ने आदमी के हाथों को अधिक बलशाली बनाया । अब उसे उसी काम को करने के लिए कम मेहनत करनी पड़ती थी । उसने दूसरे काम हाथ में लिये । विद्वानों का मत है कि पहले-पहल लोहे की खोज कास्पियन सागर के पास




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