सौर-मंडल | Soar-Mandal

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Soar-Mandal by गुणाकर मुले - Gunakar Mule

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सनहवी सदी के बाद यूरोप मे ज्योतिष-विज्ञान ने तेजी से उन्‍नति की । अडी-बडी दूरबीने बनने लगी । नए ग्रह और उपग्रह खोजे गए | ग्रटो की गतिया क बारे मे नए-नए गणितीय सिद्धात स्थापित किए गए | लेकिन इधर हमार देश ज्योतिष-जान मे पिछड गया । भास्कराचार्य (1150 ई ) के समय तक हमारा देश भी किसी अन्य देश से ज्योतिष-ज्ञान मे पीछे नही था। इसका कारण यह है कि पुराने जमाने भे हमारे देश में ज्यांतिष को विशेष महत्त्व दिया गया था । आज से करीब ढाई हजार साल पहले लिखे गए वेदाग-ज्योतिष ग्रथ का एक श्लोक है यथा शिखा मयूराणा नागाना मणयो यथा। तदधदवेदागशास्त्राणा ज्योतिष मूर्धनि स्थितम 1 । अर्थात्‌, जिस प्रकार मोरो की शिखाएँ और नागो की मणियाँ सबसे ऊँचे स्थान पर हाती हँ, उसी प्रकार वेदाग-शास्नो मे ज्योतिष का स्थान सबसे ऊँचा है। हट प्राचीन काल में हमारे देश मे ज्योतिष और गणित का अध्ययन साथ-साथ होता था। आर्यभट हमारे देश के पहले महान ज्योतिषी दै । उन्ठोमे सस्कृत भाषा मै ' आर्यभटीयम्‌ नामक ग्रथ लिखा है । उनके काद हमारे देश मे ब्रहमगुप्त, यराहमिहिर, भास्कराचार्य आदि महान ज्योतिषी हुए। भास्कराचार्य ने गणित और ज्योतिष के बारे मे 'सिद्धात- शिरोमणि” नामक एक बडा ग्रथ लिखा है। देश मे ডু भृस्कराचार्य कं बाद हमारे देश फिर ज्योतिष-शास्त्र की विशेष उन्नति नही हुई। अठारहवी सदी मे जयपुर के महाराजा सवाई जयसिह ने दिल्‍ली, जयपुर, उज्जैन आदि स्थानो मे चुना ओर पत्यरो से नने विशाल ज्योतिष-यत्र खडे किए। ये यत्र समरकद मे उलूग-येग दाय जनाई गदं वेधशाला के यो के आधार पर बनाए गए थे। लेकिन सवाई जयसिंह के समय तक यूरोप मे दूरबीने बनने लगी थी। हमारा देश इन नए आविष्कायो से नेखनर था) 1 নি 11 = महया साड कयि दवितीय , (1666-/743 इ) 16 ^ सौर मडल




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