धर्मशास्त्र संग्रह | Dharmashastra Sangrah

Dharmashastra Sangrah by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्व्गीय-अ्यकर्ता बाबू साइचरणप्रसादजीकी संशित जीबनी स्पा क्रलाा विहार प्रान्तके शाहाबाद जिलेमें भदवर नामंकी एक प्रसिद्ध बस्ती है । हमारे चरितनावकके ंशाकें सूल पुरुप बाबू नन्दासाहि वहाँके एक प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित निवासी थे । वह व्याहुते बंध वैन्य थे । बाबू सुरिष्साहि उनके एक मात्र छुन्र थे । बादू सुरिष्टसाहिके दो पुत्र हुए बालू उच्छनसाहि और बाबू सनाथसाहि । इसके अतिरिक्त उन्हे एक कन्या भी हुई थी जिसका विवाह बलिया जिठेके चरजघुरा नामक ग्राम हुआथा । बाबू उच्छनसाहि ऊुछ दिनोंके लिये अपना केश छोड़कर उड़ीसा चठेगये और वहीं रहकर व्यापार करनेठगे । उड़ीसा जानेंके समय उनकी खी मोतियाइँआरि गर्भवती थीं इसलिये वह उन्हें घर परही छोड़गये थे । उनके जानिकें छुछ पास बाद सस्बत्‌ १८९१ में उनकी खींने एक पुत्र प्रसव किया जिनका नाम बालू कत्तांसाहि रखागया । सम्ब्त १८३४ में बाबू कर्त्ताताहि तेरह बपंकी अवस्थामें अपने पिताजीके पास उड़ीसा चढेगये और वहीं रहनेठगे । वावू उच्छनसाहिने १८ वर्षतक उड़ीसामें रहकर व्यापारस बहुत घन और यश प्राप्त किया था । संवत्‌ १८३५ में वह स्वदेश ठौटे । उन दिनों देशमें अशान्ति बहुत थी और प्रबन्ध ठीक न था । इसलिये उन्हें भय था कि भदवरमें चोर डाझुओकि उपड्र- वके कारण इतना धन लेकर वह स्वच्छन्दता पूर्वक न रदसकेंगे । इसलिये बाह् उच्छनसाहि अपने पुत्र बाव् कत्तांसाहिकों साथ ठेकर अपनी बहनकी ससुराल चरजपुरामें चठेंगये । इस बीचमें उनके छोंदे भाई बाबू सनाथसाहिका देहान्त होगया था । इसलिये उन्होंने अपनी खरी विधवा भावज तथा परिवारके अन्य छोगोंकों मी भदवरसे वहीं बुलवालिया और वहीं एक बड़ा मकान चनवाकर रहनेठगे । बाद करत्तासाहिके बाद रामतवक्कठसाहि वादू लारुविहारी सादि और चाह इंश्वरदत्त साहि नामक तीन पुत्र हुए । बालू रामतवक्कठसाहिके ५ पुत्र इुए पर वे सब निःसल्तानही इस संसार्से विदा होंगये । वाद ईश्वरद्तसाहिके वंशज रामप्रीति अपने पुत्रके साथ वर्तेप्रान हैं । सम्बत्‌ १८७८ में मझले बाबू ठाठविहारीसाहिके वाबू बिष्णचन्द्र नामक एक नर इुए। इसके बाद बाबू ठारूविद्दारीकों एक और छुत्र हुए थे पर दोही वर्षकी अवस्थामें उनको स्वरगंचास होंगया । बावू विष्णुचन्द्र बडे थार्स्मिक और उद्योगी थे । उन्होंने अपने जीवनमें व्यापारसे बढहुतसा धन कमाया था अनेक स्थीनॉपर दूकानें और कोठियां खोछी थीं चारो धाम सातों पुरी तथा अनेक तीथींकी यात्राएं की थीं और एक बड़ा शिवाठ्य अनेक छूएं वाग तथा शिवाठ्यकें पास पक्के मकान बनवाये थे। सस्वत्त १८९७ में उनके प्रथम पुत्र बाद मेवालाठ हुए जो अभीतक वर्चमान हैं । उनके ग्यारहवर्ष बाद हमारे चरित-नायक बाज साछुचरणप्रसादका सम्बत्त्‌ १९०८ गे सैत्रकृष्ण प्रतिपदा रविवारकों १९ दण्ड ५६९ पठ पर जन्म हुआ था। सम्वतत १९१३ में बाद विष्णु- चन्द्रके तीसरे पुत्र बाद संतचरणप्रसाद हुए जो चारही वर्षकी अवस्थासें सीतला रोगसे पीड़ित होकर स्वर्गवासी होगये । उनके चौथे और सबसे छोटे पुत्र बाबू तपसीनारायण का जन्म सम्बत्त १९१६ में आपाढ़ कृष्ण १० झनिवार को हुआःथा । बाबू तपसीनारायण अबतक व्तघान हैं और काशीमें रहते हैं । इन चार छुत्रीके अतिरिक्त बाल विष्णुचन्द्रको तीन कल्याएं भी हु थीं जो वादू मेवाठालसे छोटी और वादू साधुचरणप्रसादसे बड़ी थीं। पर इस समय इन तीनों- मेंसे कोई भी जीवित-नहीं हैं। परन्तु उनमें से एक के पुत्र खुनाथशरण अपने पुत्रेंकिसाथ वर्तमान हैं ।




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