पंचतंत्र की श्रेष्ठ कहानियां | Panchtantra Ki Shreshtha Kathaye

Panchtantra Ki Shreshtha Kathaye by राजकुमारी श्रीवास्तव - Rajkumari Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कु 1 ियकफनसप पा मगर की पत्नी को फल तो मीठे लगते थे पर उसे मगर और बंदर की मित्रता अच्छी नहीं लगती थी। उसने सोचा रोज- रोज मगर्‌ का बंदर के पास जाना ठीक नहीं है। कहीं ऐसा न हो कि मगर विपत्ति में फंस जाए क्योंकि वृक्ष पर रहने वाले की मित्रता पानी में रहने वाले से नहीं हो सकती। अतः मगर की पत्नी ने किसी तरह बंदर को फंसाकर मार डालने का निश्चय किया। उसने सोचा बंदर के मरने पर उसका मीठा-मीठा मांस तो खाने को मिलेगा ही मगर की मित्रता भी समाप्त हो जाएगी। एक दिन मगर की पत्नी ने सोचकर उससे कहा बंदर तुम्हें रोज मीठे-मीठे फल खिलाता है और मेरे लिए भी फल भेजता है। तुम भी उसे अपने घर भोजन करने के लिए निमंत्रित करो। मगर बोला बंदर को तो तैरना आता नहीं फिर वह भोजन करने के लिए मेरे घर आएगा तो किस तरह आएगा? मगर की पत्नी बोली बंदर तुम्हारा मित्र है। वह तैरना नहीं जानता पर तुम तो जानते हो। क्या तुम उसे अपनी पीठ पर बिठाकर नहीं ला सकते? परंतु पत्ती की बात मगर के गले के नीचे नहीं उतरी। पत्नी प्रतिदिन बंदर को निमंत्रित करने के लिए आग्रह करती किंतु मगर उसकी बात पर ध्यान नहीं देता था। सच बात तो यह थी कि मगर बंदर को कष्ट नहीं देना चाइता था। जब पत्नी की बात का प्रभाव मगर पर नहीं पड़ा तो उसने एक रटेढ़ी चाल चली। उसने सोचा इस तरह तो काम चलेगा नहीं। बंदर को फंसाने के लिए कोई आल रचना चाहिए। मगर की पत्नी बीमारी का बहाना करके पड़ मई। जब मगर उससे उसका हाल पूछने लगा तो वह बोली मुझको एक ्ी (च्क(त्कि(स्सि मगर की मूर्खता / 17 टन)




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