अँधेरे की भूख | Andhere Ki Bhukh

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Andhere Ki Bhukh by रांगेय राघव - Rangeya Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साबुन विज्ञान छुए-छु३ १६ घट ७०४ . ३४६ छुपे २३ ३४ २०७ १५३ & १9४ डे छेद ३०५ ०५४ यहां यह बतलाना अप्रासंगिक न दोगा कि युद्ध के वर्षो में विदेशों से काटिक सोडा का आयात वहुत कम हुआ अं.र काश्टिक की कमी के कारण भारतीय काएखाने अपने यहां तेयार दोनेवाले साबुन से देश की बढ़ती हुई मांग को सन्तोष जनक रूप से पूरी न कर सके । अब तो काह्टिक की वड़ी भारी कमी दोगई है ओर साबन के पुराने कारखानों को भी वहुत दी मुश्किल से उनकी ज़रूरत का आधा कास्टिक ।सिल पाता दे । अस्त कास्टिक के सुलभ दो जाने पर यहां बनने वाले साबुन की मात्रा का वहुत अधिक वढ़ जाना निश्चित सा है । शिक्षा एवं उद्योग धन्धों के प्रसार के साथ दी साथ सावन की माँग में बराबर वृद्धि होती जा रही है और अधिक वृद्धि होने की पूरी झाशा है फल रवरूप सलिकट भविष्य में बहुत से नये एवं बड़े बड़े कारखाने खोले जा सकेंगे। बड़े कारखानों के साथ ही छोटे एवं गृह-उद्योग के रूप में भी साबन न्यवसाय के लिए पूरी गुंजाइश है। इस धन्वे से थोड़ी पूंजी लगाकर भी आजीविका उपार्जित की जा सकती है । अपनी निज की सांग की पूर्ति के अतिरिक्त पड़ोसी देशों में भी भारतीय सावन की अच्छी मांग होने की पूरी सम्भावना है । भारत सरकार क उद्योग एवं रसद विभाग (इंडस्ट्रीज-एर्ड समाइज) ने साबन व्यवसाय की जांच के लिए कुछ समय पहिले साबन के विशे घज्ञों की एक विशेष कमेटी सोप-पेनल के नाम से नियुक्त की थी। इस पेनल ने सारे देश के साबुन-व्यवसाय एवं साबन के उत्पादन और मांग की जांच करके इस बात की सिफारिश की है कि आगामी पांच वर्षों में भाएत में साबुन का उत्पादन मोजूदा डेढड लाख टन बाषिक से बढ़ा कर तीन लाख टन वाषिक कर दिया जाय। दिसम्बर १६४७ में दिल्‍ली में भारत सरकार के तत्वावधान में होनेघाली उद्योग व्यवसाय कानफ़रेंस ने सोप-पेनल की इस सिफारिश को स्वीकार किया है और भाएत सरकार ने देश के दूसरे चुने हुए उद्योग धन्धों के साथ ही सावन व्यवसाय को भी प्रोत्साहन देना स्वीकार किया है । च्छि




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