सयुत्त - निकाय | Sanyutt Nikaya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.05 MB
कुल पष्ठ :
584
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भिक्षु जगदीश काश्यप - Bhikshu Jagdish Kashyap
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तनान समय में राप्ती के हैं। दंड मारत की पाँच सहानवियों से एक टी राजवारी धादस्ती बसी थी | की किनारे सिद्धाधँ कुमार ने प्रवन्ा यरदण की थी । श्री कर्नियम ने की कुइवा नदी को । नढ़ी हैं । | देखो नम £ द््द भर डे दतंसान सूसथ हि का सद्दायक सदा हू ? कि सप में दे वारमती कहते हैं जो नेपाकू से दो ई विहार प्रारत में नोट नगर बचा हैं । मगघ ओर भंग जनपदों की सीमा पर बढती थी । द दिमाठय में स्थित एक सरोवर था । रत की प्रसिद्ध नदी दै । इसी के किनारे हरिद्वार प्रयाग नौर वारुणसी स्थित हैं । गम्गरा एुप्फरिणी-अंग जनपद में चस्दा नगर के पास थी । इसे रानी सर्गरा में खोद- बापा था । हिरण्यवती-डर्स ना का शारूबन उपबत्तन हिरिप्यवर्ती नदी के किनारे रिथत थे । दवरवा जिले का संनरा नछा ही हिरम्यचती नदी है यह कुछकुछा स्थाल के पास ख़नुआा नदी में निछती है इसी को हिरदा की नारी जौर कुसम्ही नारा भी कहते हैं जो झुक्ीनारा का अपनश है । कंसिको-यह गंग की एक सहायक नदी है । वर्तमान समय में इसे कसी सी कहते हैं । फडुर्थानापद्य नदी पाया और कुर्शीनारा के थीच स्थित थी । घहसान घाघी नदी ही ककुस्था मात शर्त है ( देखो कुशीनगर का इतिदास पृष्ठ ३० ) । काइसदह- इस मई के किनारे महाकत्वायन में कुछ दिनों तक विहार किया था । नदी के हुए तथागत को राहुल के परिनिर्वाम का समाचार सिखा था 2 मही-पद भरत की पॉच दर्द नदियों में से एक शी । दढ़ी गण्ठक को ही महीं कहते दिस में एक सरोवर था । तौर कोखिय सनपद की सीमा पर बहती थी । वर्तमान समर्थ में भी चढ़ सोरखपुर के वास राी में गिरती हैं । यह नदी राजद के पास बहती थीं बर्तमान पश्ान नदी ही. सम्भबल्त सस्पिनी नारे सुष्सान् ननुरुद्ध ने विहार किया था । सेंड मेश में बढती थी । इसी के किनारे जद्धगया स्थित हैं । इस ं । निदजना बऔर मोदना नदियाँ मिलकर ही यु नदी कहीं ज्ञादी
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