पंडित बालगंगाधर तिलक | Pandit Balgangadhar Tilak

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Pandit Balgangadhar Tilak by श्री मदनमोहन मालवीय - Shri Madanmohan Malviya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेकमान्य के सन्देश । श्र जा ईश्वर झाप को देता है। चाहें ता श्राप उससे लाभ. उठालें । श्रभं। देव झापके श्रछुकुल है । श्रभी, झापका अपनी, मांगें सामने नाना चाहिए । यह समय है। श्रगर शाप इस चक्तु झांगे बढ़ने में सफल इुए ते डुनिया झापसे बहुत , ब्यागे बढ़ जायगी और शाप बहुत पीछे रह जावंगे.। पहले रामभौता करने की काशिश करना ; परन्तु कदाचित्‌ उसमें सफलता न दे। ते विरोध करने की पूरी शक्ति संग्रह ऋरना ही सच्ची राजनीति है। जिस समय: श्री कृष्ण पाएडवें की तरफ से सन्धि का संदेश लेकर कौरवों के पास्र गये थे, उस समय देनें दी पक्ष एक दूसरे काः सामना करने के लिए सैन्य सामग्री भी एकत्र कर रहे थे। , इस खुनददले अवसर के खोकर श्राप श्रपना दी बुर कर तोंगे चरन्‌ श्वपने माची सन्तानों के हितपर भी कुठाराघात: करने का झपराय करेगे। श्राप के नाम से झ्ापको भावी , सन्तति शर्मायगी श्र झागे श्वाने वाली कई पुश्ते' श्रापकोा केसा करेंगी । चैय्य रखकर काम करते चले ,जाइपए । लोहे को गर्म हालतहदी में कूटना श्रच्छा दोता है । श्राप के चिजय का गोरव प्राप्त होगा । ी एक विदेशी भाषा का झष्ययन ज़बरन भी किसी जाति के सर मढा जाना भारत को छोड़ कर-झ्र। संसार के किसी; देश में देखने में नहीं झाता । यह भी एक गुलामी का मेडल है । यातोा हमें श्रांगे बढ़ते चले जाना चाहिये या इन श्रान्दी लनें का छेडड़ देना चाहिए । झब नौकरशाही से ज़्यादा श्राशा करना व्यथे है । झमेरिका में स्वतंत्रता की घाषणा पांचवें तथा छुठे दर्जे में पढ़ाई जाती है । हमें ऐसी. शिक्षा क्यों नहीं दी ज्ञाती जिससे हमारे हृदयों में देशप्रेस की तरझ उठें-कारण




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