सेवाधर्म सेवामार्ग | 1524 Sevadharm Sevamaarg; (1941)

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1524 Sevadharm Sevamaarg; (1941) by श्री मदनमोहन मालवीय - Shri Madanmohan Malviya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेवको की शिक्षा २७. वृत्ति के लिए तीस हजार रुपये दिये, जो लोफ-सेवा-कायं की्‌ शिक्षा महण करना चाहें। इस दूरद््शी दान से इस महत्वपूर्ण कार्य की नींव सदा के लिए जम गई। १८४४ में तीन टर्मों तक पूरी व्याख्यान-माला फिर कराई गई, जिन्हें सुन कर श्रोवागण यह कहने लगे कि यदि ये व्याख्यान केन्द्रीय स्थान पर कराये जायें, तो अधिक कार्यकर्ता उनसे लाभ उठा सकते हैं। इसी समय सैटिलमेन्ट, दान-व्यवस्था सोसाइटी तथा नेशनल यूनियन आफ. वोमेन वकस ने मिल कर्‌ “सम्मित व्याख्यान कमेटी” नाम की एक कमेटी वनाद जिसका उदेश्य लन्दन के केन्द्र मे उपयु क्त व्यास्यान-मालाओं का प्रबन्ध करना था। १८६७ की दो टर्मों में इस कमेटी की ओर से व्याख्यान कराये गये । इसके कुछ समय बाद ही कमेटी ने अपना प्रभाव- त्ेत्र बढ़ाना चाहा और उसने एक वैतनिक लेक्चरार मुकरर कर दिया, जो लन्दन में ही नहीं प्रान्त भर में व्याख्यान दे सके। १६०१ तक इस कमेटी की ओर से व्याख्यान दिलाये जाते रहे। १६०१ में इस कमेटी के स्थान पर “सामाजिक अध्ययन-कमेटी” नाम की एक कमेटी बनी, जो लन्दन दान-व्यवस्था की एक उप-समिति थी। इसी “सामाजिक अध्ययन-कमेटी” ने कालान्तर में पहले “अथे शास्त्र और समाज-शास्त्र के स्कूल” का रूप धारण किया और अन्त में वह स्कूल राजनीति-विज्ञान और अथशास्त्र के लन्दन स्कूल का एक विभाग बन गया। लोक-सेवियों की शिज्षा के कार्य से इद्जलैण्ड के विश्व-विद्या- लयों का सम्बन्ध सन्‌ उन्नीस-सौन्‍्तीन से प्रारम्भ होता है। समय सर एडवर्ड ने, उस समय लिवरपूल विश्व. विद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर गौनर की छत्र-छाया मे समाज-सेवकों की शिक्षा का प्रबन्ध करने की योजना सोची और सब्‌. १६०४ में उन्होंने यूनिवर्सिटी, सियो ॐ




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