बीता हुआ भविष्य | Biita Hua Bhavishy
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.05 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ जयंत विष्णु नार्लीकर - Dr. Jayant Vishnu Narlikar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका तरह नहीं है । अधिकांश उपलब्ध भारतीय भाषाओं का विज्ञान कथा-साहित्य स्टर्जीऑन के विचारों से प्रभावित दिखाई टेता है। इसलिए विज्ञान के किसी भी विकास को परिशुद्धता से प्रस्तुत करने को नहीं भूलना चाहिए तथा यह भी कि वह प्रस्तुतीकरण कहानी के रूप में हो । इसी तरह कहानी का ताना-बाना सामान्यतया मानव के आसपास ही बुना जाना चाहिए । भारतीय विज्ञान कथा-साहित्य की इसी प्रबल अंतर्धारा ने प्रस्तुत संग्रह के लिए कहानियों का चयन करते हुए महत्वपूर्ण एवं बुनियादी नियमों का काम किया | इस मुख्य आधार की उपेक्षा करना न तो उचित था और न ही प्रातिनिधिक | ऐसा माना जाता है कि विज्ञान कथा-साहित्य का विकास चार विभिन्न चरणों में हुआ है। इस विधा के उद्भव के ठीक समय के बारे में पर्याप्त विवाद रहा है। कुछ विद्वान इस विधा के उद्भव को संभव है कि गिल्गामेश के बेबिलोनियाई महाकाव्य में खोजें । सभ्यता के उघाकाल की कहानियों में विज्ञान कथा-साहित्य का उद्भव खोजने का प्रलोभन भली प्रकार समझ में आता है। इसी तरह के विचारों एवं तर्कों को भारतीय समीकरणों में उत्तरते देखा गया है जहां आज के आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी को वेदों से जोड़ा जाता है। निष्पक्ष एवं तर्कपूर्ण विश्लेषणों के आधार पर सभी इस बात से सहमत हैं कि मरी शैली कृत्त प्राचीन उत्कृष्ट ग्रंथ फ्रैक्स्टीन ही प्रथम विज्ञान कधा है । यह विडंबना ही है कि फ्रैक्स्टीन वास्तव में उस वैज्ञानिक का नाम था जिसके अजीवोगरीब परीक्षणों की परिणति है वह दैत्याकार राक्षस जिसे आज पफ्रैंकस्टीन समझा जाता है। संभवतया यह परिणाम भी उस मानवीय भूल का हो सकता है जो राक्षस की छाया में विज्ञान के छिपे काले पक्ष की आशंका से जनमा हो और जो प्रयासकर्ताओं को भुगतना पड़ता है। यह चाहे कितनी भी भयावह प्रतीत हो मेरी शैली की कृति से उभरी अंतर्धारा में एक ऐसी पृष्ठभूमि-थी जो साहसिक व रोमांचकारी थी और जिसने विज्ञान कथा-साहित्य के आरंभिक एवं मुख्य काल में अपना वर्चस्व बनाये रखा । यह स्थिति शत्ताब्दी के तीसरे और चौथे दशक तक रही । जान कंम्पवेल द्वारा आसिमोव हेनलीन और ऑर्धर क्लार्क जैसे लेखकों की सहायता से जब इस विधा में आमूल परिवर्तन किया गया तो सदियों से चले आ रहे इसके प्रभाव के पाश को तोड़ा जा सका | इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस विधा के विकास का टूसरा चरण गर्न्सबैक और कैम्पबैल द्वारा रची गयी विज्ञान कथा-साहित्य की परिभाषा से प्रभावित था | इसलिए उस समय के स्पंटनशील विज्ञान कथा-साहित्य को आगे बढ़ाने के पीछे विज्ञान का बल लगा था। विज्ञान और कथा-साहित्य के बीच सामन्जस्य बनाये रखना तलवार की धार पर चलने के बराबर था । इस काल के कृतिकारों ने तटस्थ
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