हमारे शरीर की रचना | Hamare Sharir Ki Rachana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श५ ] ... मूल झवयव कितने कितने खाने च(हियें श्प प्रोटीन भजन में झवश्य होनी चाहिये विशेषकर वर्धन काल में ( रप चर्प की झायु तक) - यदि २५. चर्प से पूर्व घोटीन कम मिलें ता चधन श्रच्छा न हागा । जवान मनुष्य के सोजन में ४०-४५ माशे से कम प्रोटीन न हनी चाहिये । प्रोटीन का काम चसा ध्यौर फर्वोेज नहीं कर सकते । जा जातियां घोटीन कम ख्राती हैं चे कमजोर हें।ती हैं । जितनी उप्ण्णता की एफ ग्राम ( एक घन शत्ताश मीटर) या माशा जल के ताप क्रम को एक दूनी शताश श्रधिक करने के लिये श्ावश्यकता है वह उप्णता की एक “इकाई” कहलाती हैं । परीक्षा से यद मालूम किया जा सकता हैं कि किसी चीज के जलने से था '्रीपननीकरण से उपणता की फिंतनी “इकाइया' उत्पन हुई । श्रर्थाव्व वह उप्णता एक ग्राम जख का ताप क्तिना चढ़ा सफती ₹ । एक ग्राम शकंरा के जलने से (श्योपलनीकरण) से उप्णता की 3६५० इकाइया घनती हैं । इसी तरर श्रौर चोजें फी इकफाइया ये है । वसा, & ४०० सवेतसार ४१०० प्रोटीन ४१०० _. इन झंका से विदित दे कि जहा तक उप्णता का संबंध है ४१ ग्राम वसा ६.४ ग्राम प्रोटीन के बरावर हैं (प्रोटीन से उप्णता कम बनती है ) या यह कहे कि १ मास वसा २.३ भाग प्रीटीन के चरायर है । यही निसवत कर्वोज श्रीर वसा की हैं । शीत ऋतु में घृत का ्धिक सेवन इसी कारण बहुत उपयागी है । इन तीनें सूल झवयवों के अतिरिक्त दम का जल और भांति भांति के लवणों की भी झावश्यकता है'। प्रत्येक सेल में किसी न किसी घकार के लचण पाए जाते है । शस्थियां लवर्णो यिना (खटिक सये।जित) मजबूत नद्दीं बनतीं । रक्त के कणुरप्लक के लिये लाह संयेजित की झावश्यकता है । लघण अर जल शक्ति उत्पन्न करने के काम में नहीं झाते । खनिज के




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