भोजपुरी लोक संस्कृति | Bhojpuri Lok Sanskriti

Bhojpuri Lok Sanskriti by कृष्णदेव उपाध्याय - Krishndev upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भुमिंका €& 0 डॉ० कृष्णदेव उपाब्याय लोक्-यार्ता के क्षेत्र मे आजीवन' निठापृवक पेवा करते रहे हू ओर उनके जैसे तपोपूष्ठ; सान- व व्यक्ति मुझसे कहे कि भूमिगा डिख , यह मेरे झिए बहुत ही सकोच की बात हे। परतु वे बडे हे, उनकी बात टाऊ भी नहीं ण्कता। उससे फुड पकित्या उनर्व नमी पुस्तक “भोजपुरी लोक-सस्टति” के विषय मे लिख रहा हैं । स्य० सर जाज प्रियसन न “विहार पीजेण्त लाइफ' में भोजपुरी, मगही, मैथिली जीवन' ओर उसमे प्रएक्‍़्त रमद्व दात्दा- गली का सवक्षणात्मव नव्ययन करके बा उपर किया हे कि भारतीय छोक-जीवन ओर विज्षेपत पूवा शेत्र के लोक-जीयर के विविथ पक्षो की ओर विद्वाना का याम' गया ओर इससे निहित सास्क़तिक-भापिक तत्त्वो की खोज को शाव के क्षेत्र म प्रतिष्ठा सिली | लोक-गीतो के सकलन' के माग-दशन' का काय स्व० प० रामनरदा त्रिपाठी ने किया था। लोक-गीतो में निहित सहज माघुय जोर सुध्म मानवीय संवेदना की ओर उन्होने व्यान' आछृष्ट किया। इनके बाद तो लोकवार्ता के सकलन की लम्बी, अनपच्छिन्न परम्परा हिंदी मे चली, साथ ही लोक-भाषाओ में वैज्ञानिक अध्ययन की भी । भोजपुरी क्षेत्र मे स्व० उदयनारायण तियारी, स्व० सहाराजऊुमार दुगशिकर नि, स्व० हस कुमार तिवारी, स्य० महापण्डित राहुल साकृत्यायन और स्व० स्वामी नाथ सिह ने अठग-अलग ढंग से इस काप को गरिमामय स्तर तक पहुँचाया। इसी श्यखला मे आज श्री गणेश चोबे और डॉ० व्राणदेव' उपाव्याय जैसे अध्येता इस लाक सजीवनी बारा को प्रगति प्रदान कर रहे हे। भोजपुरी समाज इनका चिर ऋणी रहेगा । “भोजपुरी लोव-मस्क़ति” ग्रन्थ मे एक प्रकार से विश्वकोशात्मक विवरण है जिसमे जीवन के सभी पक्षों का--आस्थाओ, विध्वासो, रीति-रिवाजो, पर्वा-उत्सवो, दैनन्दिन ओर नैमित्तिक अनष्ठानो , खान-पान, रहन-सहन, हास-परिहास, मनोरजन के सा ता, श्यगार-प्रसायन, रिष्तो के ताऐो-बानों सामाजिक व्यवस्था की. बुराइयो और अच्छाइयो--सब बात पर इतने सम्ेप मे आर त्तनी स्पप्टता के साथ प्रिपरण रोचक ढंग से दिया गया है। यहा तक कि निषिद्ध था वर्जित वस्तुआ करा विवरण नोर जारापाप की प्रक़ति के प्रति मानवीय प्रतिक्रिया का विवरण भी बडे सटीक ढंग से दिया गया है। यर जवच्य हे कि विवरण मे उठ उठूट गया हो। क्योकि यह एव' व्यक्ति का किया गया काम हे और सर्वोत्तम लग्य हा सकता हे। परन्तु सबवत्तिम के थोड़े उत्तम काय को टाउना टीक नहीं होता। जाररणीय उपा याय जी ने उत्तम काय किया है। इन्होंने तथ्यों को इस तरह से वर्गीकृत और सुसवद्ध रूप में रखा फि भोजपुरी लोफ-सस्क्ति का समग्र चिन सामने उपस्थित हो जाता हे। इस प्रकार यह बहत बडा अवदान हे छोकवार्ता अप्ययन क्षेत्र से । सस्कत्ति की पहिचान समग्रता मे ही होती है। वह समग्रता खण्डो में नहीं पहिचानी जाती । प्रस्तुत ग्रस्थ के अध्ययन से समग्र तरिंट से लोक-सस्क़ति को पहिचानने के लिए प्रामाणिक आधार मिलेगा। उपाध्याय जी ने देश की सास्कृतिक परम्परा से बीच-बीच में, अपने विवरणात्मक तथ्यों को जोड़ने का प्रयास भी किया हे। परन्तु उनका अधिक व्यान विवरण देन रहें। विवरण की प्रयोजन-मीमासा पर नहीं हे। परन्तु एक ग्रन्थ में यह संभव भी नहीं है। मेने इस ग्रन्थ को आद्यन्त पढ़ कर बहत-सी नयी बाते सीखी है। यह भी लगा है कि मेरे निजी जनुभव ससार की बत्त सारी नीजे छट गयी हैं। पर लोक बटा बिस्तत है और भोजपुरी-लोक वटा विविध भी हे। ध्समें इतने सामाजिक ओर प्रतिष्टित स्तरों की ससछ्ति है कि पूरा विवरण तैयार करने के लिए जौर विवरणों की साभिश्नायता का विववेचन करने के छिए, क्रम से कम बीमेक लोग की टोली ठगे ओर तब दस पन्‍्तह वर्षी मे यह विव्वकोश तैयार होगा। अकेले एक जादमी ने, एक ऐसे बोद का प्रारूप, अपने अकेले बल पर तैयार किया हे, यह आइचय है ओर ध्स कारण इस ग्रन्थ की जितनी भी प्रदासा की जाय, कम होगी। 0 है पे -विद्यानिवास मिश्र वाराणसी जेष्ठ सुदी ३, २०४६ बि०; ६/६/१९८९ ईं०




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